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Saturday, 19 August 2017
सेल्फी के दिवानों यह तो हद है
पिछले दो दिन से सोशल मीडिया पर एक ज़नाब का सेल्फी प्रेम ज़बरदस्त तरीके से वायरल हो रहा है | हम लोगों ने बहुत तरीके कि सेल्फी देखी हैं पर इन भाईसाहब ने जो किया है, वो न केवल तारीफ के काबिल पर दिल में एक सवाल भी पैदा कर रहा है कि...
Tuesday, 15 August 2017
हिन्दी का शुध्द प्रयोग
हिंदी में होने वाली गलतियाँ
®®®®®®®®®®®®
*हिन्दी लिखने वाले अक़्सर 'ई' और 'यी' में, 'ए' और 'ये' में और 'एँ' और 'यें' में जाने-अनजाने गड़बड़ करते हैं...।*
कहाँ क्या इस्तेमाल होगा, इसका ठीक-ठीक ज्ञान होना चाहिए...।
जिन शब्दों के अन्त में 'ई' आता है वे संज्ञाएँ होती हैं क्रियाएँ नहीं,
*जैसे: मिठाई, मलाई, सिंचाई, ढिठाई, बुनाई, सिलाई, कढ़ाई, निराई, गुणाई, लुगाई, लगाई-बुझाई...।*
इसलिए 'तुमने मुझे पिक्चर दिखाई' में 'दिखाई' ग़लत है... इसकी जगह 'दिखायी' का प्रयोग किया जाना चाहिए...। इसी तरह कई लोग 'नयी' को 'नई' लिखते हैं...। 'नई' ग़लत है , सही शब्द 'नयी' है... मूल शब्द 'नया' है , उससे 'नयी' बनेगा...।
क्या तुमने क्वेश्चन-पेपर से आंसरशीट मिलायी...?
( 'मिलाई' ग़लत है...।)
आज उसने मेरी मम्मी से मिलने की इच्छा जतायी...।
( 'जताई' ग़लत है...।)
उसने बर्थडे-गिफ़्ट के रूप में नयी साड़ी पायी...। ('पाई' ग़लत है...।)
*अब आइए 'ए' और 'ये' के प्रयोग पर...।*
बच्चों ने प्रतियोगिता के दौरान सुन्दर चित्र बनाये...। ( 'बनाए' नहीं...। )
लोगों ने नेताओं के सामने अपने-अपने दुखड़े गाये...। ( 'गाए' नहीं...। )
दीवाली के दिन लखनऊ में लोगों ने अपने-अपने घर सजाये...। ( 'सजाए' नहीं...। )
*तो फिर प्रश्न उठता है कि 'ए' का प्रयोग कहाँ होगा..?*
'ए' वहाँ आएगा जहाँ अनुरोध या रिक्वेस्ट की बात होगी...।
अब आप काम देखिए, मैं चलता हूँ...। ( 'देखिये' नहीं...। )
आप लोग अपनी-अपनी ज़िम्मेदारी के विषय में सोचिए...। ( 'सोचिये' नहीं...। )
नवेद! ऐसा विचार मन में न लाइए...। ( 'लाइये' ग़लत है...। )
*अब आख़िर (अन्त) में 'यें' और 'एँ' की बात...*
यहाँ भी अनुरोध का नियम ही लागू होगा... रिक्वेस्ट की जाएगी तो 'एँ' लगेगा , 'यें' नहीं...।
आप लोग कृपया यहाँ आएँ...। ( 'आयें' नहीं...। )
जी बताएँ , मैं आपके लिए क्या करूँ ? ( 'बतायें' नहीं...। )
मम्मी , आप डैडी को समझाएँ...। ( 'समझायें' नहीं...। )
*अन्त में सही-ग़लत का एक लिटमस टेस्ट...*
एकदम आसान सा... जहाँ आपने 'एँ' या 'ए' लगाया है , वहाँ 'या' लगाकर देखें...। क्या कोई शब्द बनता है ? यदि नहीं , तो आप ग़लत लिख रहे हैं...।
आजकल लोग 'शुभकामनायें' लिखते हैं... इसे 'शुभकामनाया' कर दीजिए...। 'शुभकामनाया' तो कुछ होता नहीं , इसलिए 'शुभकामनायें' भी नहीं होगा...।
'दुआयें' भी इसलिए ग़लत है और 'सदायें' भी... 'देखिये' , 'बोलिये' , 'सोचिये' इसीलिए ग़लत हैं क्योंकि 'देखिया' , 'बोलिया' , 'सोचिया' कुछ नहीं होते...।
®®®®®®®®®®®®
*हिन्दी लिखने वाले अक़्सर 'ई' और 'यी' में, 'ए' और 'ये' में और 'एँ' और 'यें' में जाने-अनजाने गड़बड़ करते हैं...।*
कहाँ क्या इस्तेमाल होगा, इसका ठीक-ठीक ज्ञान होना चाहिए...।
जिन शब्दों के अन्त में 'ई' आता है वे संज्ञाएँ होती हैं क्रियाएँ नहीं,
*जैसे: मिठाई, मलाई, सिंचाई, ढिठाई, बुनाई, सिलाई, कढ़ाई, निराई, गुणाई, लुगाई, लगाई-बुझाई...।*
इसलिए 'तुमने मुझे पिक्चर दिखाई' में 'दिखाई' ग़लत है... इसकी जगह 'दिखायी' का प्रयोग किया जाना चाहिए...। इसी तरह कई लोग 'नयी' को 'नई' लिखते हैं...। 'नई' ग़लत है , सही शब्द 'नयी' है... मूल शब्द 'नया' है , उससे 'नयी' बनेगा...।
क्या तुमने क्वेश्चन-पेपर से आंसरशीट मिलायी...?
( 'मिलाई' ग़लत है...।)
आज उसने मेरी मम्मी से मिलने की इच्छा जतायी...।
( 'जताई' ग़लत है...।)
उसने बर्थडे-गिफ़्ट के रूप में नयी साड़ी पायी...। ('पाई' ग़लत है...।)
*अब आइए 'ए' और 'ये' के प्रयोग पर...।*
बच्चों ने प्रतियोगिता के दौरान सुन्दर चित्र बनाये...। ( 'बनाए' नहीं...। )
लोगों ने नेताओं के सामने अपने-अपने दुखड़े गाये...। ( 'गाए' नहीं...। )
दीवाली के दिन लखनऊ में लोगों ने अपने-अपने घर सजाये...। ( 'सजाए' नहीं...। )
*तो फिर प्रश्न उठता है कि 'ए' का प्रयोग कहाँ होगा..?*
'ए' वहाँ आएगा जहाँ अनुरोध या रिक्वेस्ट की बात होगी...।
अब आप काम देखिए, मैं चलता हूँ...। ( 'देखिये' नहीं...। )
आप लोग अपनी-अपनी ज़िम्मेदारी के विषय में सोचिए...। ( 'सोचिये' नहीं...। )
नवेद! ऐसा विचार मन में न लाइए...। ( 'लाइये' ग़लत है...। )
*अब आख़िर (अन्त) में 'यें' और 'एँ' की बात...*
यहाँ भी अनुरोध का नियम ही लागू होगा... रिक्वेस्ट की जाएगी तो 'एँ' लगेगा , 'यें' नहीं...।
आप लोग कृपया यहाँ आएँ...। ( 'आयें' नहीं...। )
जी बताएँ , मैं आपके लिए क्या करूँ ? ( 'बतायें' नहीं...। )
मम्मी , आप डैडी को समझाएँ...। ( 'समझायें' नहीं...। )
*अन्त में सही-ग़लत का एक लिटमस टेस्ट...*
एकदम आसान सा... जहाँ आपने 'एँ' या 'ए' लगाया है , वहाँ 'या' लगाकर देखें...। क्या कोई शब्द बनता है ? यदि नहीं , तो आप ग़लत लिख रहे हैं...।
आजकल लोग 'शुभकामनायें' लिखते हैं... इसे 'शुभकामनाया' कर दीजिए...। 'शुभकामनाया' तो कुछ होता नहीं , इसलिए 'शुभकामनायें' भी नहीं होगा...।
'दुआयें' भी इसलिए ग़लत है और 'सदायें' भी... 'देखिये' , 'बोलिये' , 'सोचिये' इसीलिए ग़लत हैं क्योंकि 'देखिया' , 'बोलिया' , 'सोचिया' कुछ नहीं होते...।
Saturday, 12 August 2017
कहाँ जा रहा है हमारा समाज
दो खबरों पर जरा नजर डालिए।
1- 12 हजार करोड़ रुपये की मालियत वाले रेमंड ग्रुप के मालिक विजयपत सिंघानिया पैदल हो गए। बेटे ने पैसे-पैसे के लिए मोहताज कर दिया।
2- करोड़ों रुपये के फ्लैट्स की मालकिन आशा साहनी का मुंबई के उनके फ्लैट में कंकाल मिला।
विजयपत सिंघानिया और आशा साहनी, दोनों ही अपने बेटों को अपनी दुनिया समझते थे। पढ़ा-लिखाकर योग्य बनाकर उन्हें अपने से ज्यादा कामयाबी की बुलंदी पर देखना चाहते थे। हर मां, हर पिता की यही इच्छा होती है। विजयपत सिंघानिया ने यही सपना देखा होगा कि उनका बेटा उनकी विरासत संभाले, उनके कारोबार को और भी ऊंचाइयों पर ले जाए। आशा साहनी और विजयपत सिंघानिया दोनों की इच्छा पूरी हो गई। आशा का बेटा विदेश में आलीशान जिंदगी जीने लगा, सिंघानिया के बेटे गौतम ने उनका कारोबार संभाल लिया, तो फिर कहां चूक गए थे दोनों। क्यों आशा साहनी कंकाल बन गईं, क्यों विजयपत सिंघानिया 78 साल की उम्र में सड़क पर आ गए। मुकेश अंबानी के राजमहल से ऊंचा जेके हाउस बनवाया था, लेकिन अब किराए के फ्लैट में रहने पर मजबूर हैं। तो क्या दोषी सिर्फ उनके बच्चे हैं..?
अब जरा जिंदगी के क्रम पर नजर डालें। बचपन में ढेर सारे नाते रिश्तेदार, ढेर सारे दोस्त, ढेर सारे खेल, खिलौने..। थोड़े बड़े हुए तो पाबंदियां शुरू। जैसे जैसे पढ़ाई आगे बढ़ी, कामयाबी का फितूर, आंखों में ढेर सारे सपने। कामयाबी मिली, सपने पूरे हुए, आलीशान जिंदगी मिली, फिर अपना घर, अपना निजी परिवार। हम दो, हमारा एक, किसी और की एंट्री बैन। दोस्त-नाते रिश्तेदार छूटे। यही तो है शहरी जिंदगी। दो पड़ोसी बरसों से साथ रहते हैं, लेकिन नाम नहीं जानते हैं एक-दूसरे का। क्यों जानें, क्या मतलब है। हम क्यों पूछें..। फिर एक तरह के डायलॉग-हम लोग तो बच्चों के लिए जी रहे हैं।
मेरी नजर में ये दुनिया का सबसे घातक डायलॉग है-'हम तो अपने बच्चों के लिए जी रहे हैं, बस सब सही रास्ते पर लग जाएं।' अगर ये सही है तो फिर बच्चों के कामयाब होने के बाद आपके जीने की जरूरत क्यों है। यही तो चाहते थे कि बच्चे कामयाब हो जाएं। कहीं ये हिडेन एजेंडा तो नहीं था कि बच्चे कामयाब होंगे तो उनके साथ बुढ़ापे में हम लोग मौज मारेंगे..? अगर नहीं तो फिर आशा साहनी और विजयपत सिंघानिया को शिकायत कैसी। दोनों के बच्चे कामयाब हैं, दोनों अपने बच्चों के लिए जिए, तो फिर अब उनका काम खत्म हो गया, जीने की जरूरत क्या है।
आपको मेरी बात बुरी लग सकती है, लेकिन ये जिंदगी अनमोल है, सबसे पहले अपने लिए जीना सीखिए। जंगल में हिरन से लेकर भेड़िए तक झुंड बना लेते हैं, लेकिन इंसान क्यों अकेला रहना चाहता है। गरीबी से ज्यादा अकेलापन तो अमीरी देती है। क्यों जवानी के दोस्त बढ़ती उम्र के साथ छूटते जाते हैं। नाते रिश्तेदार सिमटते जाते हैं..। करोड़ों के फ्लैट की मालकिन आशा साहनी के साथ उनकी ननद, भौजाई, जेठ, जेठानी के बच्चे पढ़ सकते थे..? क्यों खुद को अपने बेटे तक सीमित कर लिया। सही उम्र में क्यों नहीं सोचा कि बेटा अगर नालायक निकल गया तो कैसे जिएंगी। जब दम रहेगा, दौलत रहेगी, तब सामाजिक सरोकार टूटे रहेंगे, ऐसे में उम्र थकने पर तो अकेलापन ही हासिल होगा।
इस दुनिया का सबसे बड़ा भय है अकेलापन। व्हाट्सएप, फेसबुक के सहारे जिंदगी नहीं कटने वाली। जीना है तो घर से निकलना होगा, रिश्ते बनाने होंगे। दोस्ती गांठनी होगी। पड़ोसियों से बातचीत करनी होगी। आज के फ्लैट कल्चर वाले महानगरीय जीवन में सबसे बड़ी चुनौती तो ये है कि खुदा न खासता आपकी मौत हो गई तो क्या कंधा देने वाले चार लोगों का इंतजाम आपने कर रखा है..? जिन पड़ोसियों के लिए नो एंट्री का बोर्ड लगा रखा था, जिन्हें कभी आपने घर नहीं बुलाया, वो भला आपको घाट तक पहुंचाने क्यों जाएंगे..?
याद कीजिए दो फिल्मों को। एक अवतार, दूसरी बागबां। अवतार फिल्म में नायक अवतार (राजेश खन्ना) बेटों से बेदखल होकर अगर जिंदगी में दोबारा उठ खड़ा हुआ तो उसके पीछे दो वजहें थीं। एक तो अवतार के दोस्त थे, दूसरे एक वफादार नौकर, जिसे अवतार ने अपने बेटों की तरह पाला था। वक्त पड़ने पर यही लोग काम आए। बागबां के राज मल्होत्रा (अमिताभ बच्चन) बेटों से बेइज्जत हुए, लेकिन दूसरी पारी में बेटों से बड़ी कामयाबी कैसे हासिल की, क्योंकि उन्होंने एक अनाथ बच्चे (सलमान खान) को अपने बेटे की तरह पाला था, उन्हें मोटा भाई कहने वाला दोस्त (परेश रावल) था, नए दौर में नई पीढ़ी से जुड़े रहने की कूव्वत थी।
विजयपत सिंघानिया के मरने के बाद सब कुछ तो वैसे भी गौतम सिंघानिया का ही होने वाला था, तो फिर क्यों जीते जी सब कुछ बेटे को सौंप दिया..? क्यों संतान की मुहब्बत में ये भूल गए कि इंसान की फितरत किसी भी वक्त बदल सकती है। जो गलती विजयपत सिंघानिया ने की, आशा साहनी ने की, वो आप मत कीजिए। रिश्तों और दोस्ती की बागबानी को सींचते रहिए, ये जिंदगी आपकी है, बच्चों की बजाय पहले खुद के लिए जिंदा रहिए। आप जिंदा रहेंगे, बच्चे जिंदा रहेंगे। अपेक्षा किसी से भी मत कीजिए, क्योंकि अपेक्षाएं ही दुख का कारण हैं।
साभार फेसबुक..
1- 12 हजार करोड़ रुपये की मालियत वाले रेमंड ग्रुप के मालिक विजयपत सिंघानिया पैदल हो गए। बेटे ने पैसे-पैसे के लिए मोहताज कर दिया।
2- करोड़ों रुपये के फ्लैट्स की मालकिन आशा साहनी का मुंबई के उनके फ्लैट में कंकाल मिला।
विजयपत सिंघानिया और आशा साहनी, दोनों ही अपने बेटों को अपनी दुनिया समझते थे। पढ़ा-लिखाकर योग्य बनाकर उन्हें अपने से ज्यादा कामयाबी की बुलंदी पर देखना चाहते थे। हर मां, हर पिता की यही इच्छा होती है। विजयपत सिंघानिया ने यही सपना देखा होगा कि उनका बेटा उनकी विरासत संभाले, उनके कारोबार को और भी ऊंचाइयों पर ले जाए। आशा साहनी और विजयपत सिंघानिया दोनों की इच्छा पूरी हो गई। आशा का बेटा विदेश में आलीशान जिंदगी जीने लगा, सिंघानिया के बेटे गौतम ने उनका कारोबार संभाल लिया, तो फिर कहां चूक गए थे दोनों। क्यों आशा साहनी कंकाल बन गईं, क्यों विजयपत सिंघानिया 78 साल की उम्र में सड़क पर आ गए। मुकेश अंबानी के राजमहल से ऊंचा जेके हाउस बनवाया था, लेकिन अब किराए के फ्लैट में रहने पर मजबूर हैं। तो क्या दोषी सिर्फ उनके बच्चे हैं..?
अब जरा जिंदगी के क्रम पर नजर डालें। बचपन में ढेर सारे नाते रिश्तेदार, ढेर सारे दोस्त, ढेर सारे खेल, खिलौने..। थोड़े बड़े हुए तो पाबंदियां शुरू। जैसे जैसे पढ़ाई आगे बढ़ी, कामयाबी का फितूर, आंखों में ढेर सारे सपने। कामयाबी मिली, सपने पूरे हुए, आलीशान जिंदगी मिली, फिर अपना घर, अपना निजी परिवार। हम दो, हमारा एक, किसी और की एंट्री बैन। दोस्त-नाते रिश्तेदार छूटे। यही तो है शहरी जिंदगी। दो पड़ोसी बरसों से साथ रहते हैं, लेकिन नाम नहीं जानते हैं एक-दूसरे का। क्यों जानें, क्या मतलब है। हम क्यों पूछें..। फिर एक तरह के डायलॉग-हम लोग तो बच्चों के लिए जी रहे हैं।
मेरी नजर में ये दुनिया का सबसे घातक डायलॉग है-'हम तो अपने बच्चों के लिए जी रहे हैं, बस सब सही रास्ते पर लग जाएं।' अगर ये सही है तो फिर बच्चों के कामयाब होने के बाद आपके जीने की जरूरत क्यों है। यही तो चाहते थे कि बच्चे कामयाब हो जाएं। कहीं ये हिडेन एजेंडा तो नहीं था कि बच्चे कामयाब होंगे तो उनके साथ बुढ़ापे में हम लोग मौज मारेंगे..? अगर नहीं तो फिर आशा साहनी और विजयपत सिंघानिया को शिकायत कैसी। दोनों के बच्चे कामयाब हैं, दोनों अपने बच्चों के लिए जिए, तो फिर अब उनका काम खत्म हो गया, जीने की जरूरत क्या है।
आपको मेरी बात बुरी लग सकती है, लेकिन ये जिंदगी अनमोल है, सबसे पहले अपने लिए जीना सीखिए। जंगल में हिरन से लेकर भेड़िए तक झुंड बना लेते हैं, लेकिन इंसान क्यों अकेला रहना चाहता है। गरीबी से ज्यादा अकेलापन तो अमीरी देती है। क्यों जवानी के दोस्त बढ़ती उम्र के साथ छूटते जाते हैं। नाते रिश्तेदार सिमटते जाते हैं..। करोड़ों के फ्लैट की मालकिन आशा साहनी के साथ उनकी ननद, भौजाई, जेठ, जेठानी के बच्चे पढ़ सकते थे..? क्यों खुद को अपने बेटे तक सीमित कर लिया। सही उम्र में क्यों नहीं सोचा कि बेटा अगर नालायक निकल गया तो कैसे जिएंगी। जब दम रहेगा, दौलत रहेगी, तब सामाजिक सरोकार टूटे रहेंगे, ऐसे में उम्र थकने पर तो अकेलापन ही हासिल होगा।
इस दुनिया का सबसे बड़ा भय है अकेलापन। व्हाट्सएप, फेसबुक के सहारे जिंदगी नहीं कटने वाली। जीना है तो घर से निकलना होगा, रिश्ते बनाने होंगे। दोस्ती गांठनी होगी। पड़ोसियों से बातचीत करनी होगी। आज के फ्लैट कल्चर वाले महानगरीय जीवन में सबसे बड़ी चुनौती तो ये है कि खुदा न खासता आपकी मौत हो गई तो क्या कंधा देने वाले चार लोगों का इंतजाम आपने कर रखा है..? जिन पड़ोसियों के लिए नो एंट्री का बोर्ड लगा रखा था, जिन्हें कभी आपने घर नहीं बुलाया, वो भला आपको घाट तक पहुंचाने क्यों जाएंगे..?
याद कीजिए दो फिल्मों को। एक अवतार, दूसरी बागबां। अवतार फिल्म में नायक अवतार (राजेश खन्ना) बेटों से बेदखल होकर अगर जिंदगी में दोबारा उठ खड़ा हुआ तो उसके पीछे दो वजहें थीं। एक तो अवतार के दोस्त थे, दूसरे एक वफादार नौकर, जिसे अवतार ने अपने बेटों की तरह पाला था। वक्त पड़ने पर यही लोग काम आए। बागबां के राज मल्होत्रा (अमिताभ बच्चन) बेटों से बेइज्जत हुए, लेकिन दूसरी पारी में बेटों से बड़ी कामयाबी कैसे हासिल की, क्योंकि उन्होंने एक अनाथ बच्चे (सलमान खान) को अपने बेटे की तरह पाला था, उन्हें मोटा भाई कहने वाला दोस्त (परेश रावल) था, नए दौर में नई पीढ़ी से जुड़े रहने की कूव्वत थी।
विजयपत सिंघानिया के मरने के बाद सब कुछ तो वैसे भी गौतम सिंघानिया का ही होने वाला था, तो फिर क्यों जीते जी सब कुछ बेटे को सौंप दिया..? क्यों संतान की मुहब्बत में ये भूल गए कि इंसान की फितरत किसी भी वक्त बदल सकती है। जो गलती विजयपत सिंघानिया ने की, आशा साहनी ने की, वो आप मत कीजिए। रिश्तों और दोस्ती की बागबानी को सींचते रहिए, ये जिंदगी आपकी है, बच्चों की बजाय पहले खुद के लिए जिंदा रहिए। आप जिंदा रहेंगे, बच्चे जिंदा रहेंगे। अपेक्षा किसी से भी मत कीजिए, क्योंकि अपेक्षाएं ही दुख का कारण हैं।
साभार फेसबुक..
Sunday, 6 August 2017
Frndship Day Poem must share with FRNDS
*Harivansh Rai Bachhan's poem on FRIENDSHIP :*
_________________________________
....मै यादों का
किस्सा खोलूँ तो,
कुछ दोस्त बहुत
याद आते हैं....
...मै गुजरे पल को सोचूँ
तो, कुछ दोस्त
बहुत याद आते हैं....
_...अब जाने कौन सी नगरी में,_
_...आबाद हैं जाकर मुद्दत से....😔_
....मै देर रात तक जागूँ तो ,
कुछ दोस्त
बहुत याद आते हैं....
....कुछ बातें थीं फूलों जैसी,
....कुछ लहजे खुशबू जैसे थे,
....मै शहर-ए-चमन में टहलूँ तो,
....कुछ दोस्त बहुत याद आते हैं.
_...सबकी जिंदगी बदल गयी,_
_...एक नए सिरे में ढल गयी,_😔
_...किसी को नौकरी से फुरसत नही..._
_...किसी को दोस्तों की जरुरत नही...._😔
_...सारे यार गुम हो गये हैं..._
...."तू" से "तुम" और "आप" हो गये है....
....मै गुजरे पल को सोचूँ
तो, कुछ दोस्त बहुत याद आते हैं....
_...धीरे धीरे उम्र कट जाती है..._
_...जीवन यादों की पुस्तक बन जाती है,_😔
_...कभी किसी की याद बहुत तड़पाती है..._
_और कभी यादों के सहारे ज़िन्दगी कट जाती है ..._😔
....किनारो पे सागर के खजाने नहीं आते,
....फिर जीवन में दोस्त पुराने नहीं आते...
_....जी लो इन पलों को हस के दोस्त,_😁
_फिर लौट के दोस्ती के जमाने नहीं आते ...._
*....हरिवंशराय बच्चन*
_Dedicated to all freinds._
_Share it with your freinds too._
#मेहरा_उपेन्द्र.........
_________________________________
....मै यादों का
किस्सा खोलूँ तो,
कुछ दोस्त बहुत
याद आते हैं....
...मै गुजरे पल को सोचूँ
तो, कुछ दोस्त
बहुत याद आते हैं....
_...अब जाने कौन सी नगरी में,_
_...आबाद हैं जाकर मुद्दत से....😔_
....मै देर रात तक जागूँ तो ,
कुछ दोस्त
बहुत याद आते हैं....
....कुछ बातें थीं फूलों जैसी,
....कुछ लहजे खुशबू जैसे थे,
....मै शहर-ए-चमन में टहलूँ तो,
....कुछ दोस्त बहुत याद आते हैं.
_...सबकी जिंदगी बदल गयी,_
_...एक नए सिरे में ढल गयी,_😔
_...किसी को नौकरी से फुरसत नही..._
_...किसी को दोस्तों की जरुरत नही...._😔
_...सारे यार गुम हो गये हैं..._
...."तू" से "तुम" और "आप" हो गये है....
....मै गुजरे पल को सोचूँ
तो, कुछ दोस्त बहुत याद आते हैं....
_...धीरे धीरे उम्र कट जाती है..._
_...जीवन यादों की पुस्तक बन जाती है,_😔
_...कभी किसी की याद बहुत तड़पाती है..._
_और कभी यादों के सहारे ज़िन्दगी कट जाती है ..._😔
....किनारो पे सागर के खजाने नहीं आते,
....फिर जीवन में दोस्त पुराने नहीं आते...
_....जी लो इन पलों को हस के दोस्त,_😁
_फिर लौट के दोस्ती के जमाने नहीं आते ...._
*....हरिवंशराय बच्चन*
_Dedicated to all freinds._
_Share it with your freinds too._
#मेहरा_उपेन्द्र.........
Friday, 4 August 2017
Dard Ae Married Man
You ask your wife something and she says, *"wahan rakha hai.."*
This "wahan" can be either:
1. on the table
2. or any of the 26 drawers in kitchen
3. or even Antarctica..!!!
When wife say, *"woh laa do.."*..
It can be:
1. her Lipstick
2. or milk from market
3. or an AK 56..!!!
When wife says *"yeh kya hai..??"*
It can be:
1. your Pyjamas on the floor
2. Shoes lying around
3. or a Drone flying over Afghanistan.!!
When wife says, *"tumhe kabhi kuch samajh nahi aata.."*...It can be about
1. a new mushy WhatsApp msg
2. or Einstein's Theory of Relativity
3. or her latest spending spree in Mall...!
When wife says, *"abb bohot ho gaya..."* ...It can be
1. the mascara she is putting
2. or the amount of Anthrax that needs to be put in a Biological Weapon
3. or the latest spat she had...with your mother..!!!
And....when wife says, *"main kaisi lag rahi hoon?"*
Its GAME OVER.
It doesn't have any meaning...
except confirmed annihilation.
It just puts you in a fix which Arjun had faced.... just before the War started...... in Mahabharata ...as to whether you should follow *Dharma ....or Karma...!!!*
😂😁😀😂😀😂😁😀
DEDICATED TO MY MARRIED FRIENDS
This "wahan" can be either:
1. on the table
2. or any of the 26 drawers in kitchen
3. or even Antarctica..!!!
When wife say, *"woh laa do.."*..
It can be:
1. her Lipstick
2. or milk from market
3. or an AK 56..!!!
When wife says *"yeh kya hai..??"*
It can be:
1. your Pyjamas on the floor
2. Shoes lying around
3. or a Drone flying over Afghanistan.!!
When wife says, *"tumhe kabhi kuch samajh nahi aata.."*...It can be about
1. a new mushy WhatsApp msg
2. or Einstein's Theory of Relativity
3. or her latest spending spree in Mall...!
When wife says, *"abb bohot ho gaya..."* ...It can be
1. the mascara she is putting
2. or the amount of Anthrax that needs to be put in a Biological Weapon
3. or the latest spat she had...with your mother..!!!
And....when wife says, *"main kaisi lag rahi hoon?"*
Its GAME OVER.
It doesn't have any meaning...
except confirmed annihilation.
It just puts you in a fix which Arjun had faced.... just before the War started...... in Mahabharata ...as to whether you should follow *Dharma ....or Karma...!!!*
😂😁😀😂😀😂😁😀
DEDICATED TO MY MARRIED FRIENDS
Wednesday, 2 August 2017
JIO EK PREM KATHA
😂😂😜😜😜😝😝😜😂😜😂
अशरफ अली :- अगर तुम्हें एयरटेल 4 G कबूल है तो बोलो एयरटेल 4 G ज़िन्दाबाद 💪
तारा सिंह :- एयरटेल 4 G ज़िंदाबाद 🤝
अशरफ अली :- Hmmm कहो सुनील मित्तल ज़िन्दाबाद 💪
तारा सिंह :- सुनील ज़िंदाबाद 🤝
अशरफ अली :- अब रिलाइंस JIO मुर्दाबाद 😂
तारा सिंह :- अशरफ अली 😡 अशरफ अली 😡 अशरफ अली 😡 अशरफ अली 😡
ये बकवास क्यों कर रहे आप 😡😡😡😡😡
आपका एयरटेल 4 G ज़िंदाबाद है इससे हमें कोई ऐतराज नहीं 😡 लेकिन हमारा रिलाइंस JIO ज़िंदाबाद था , ज़िन्दाबाद है और ज़िन्दाबाद रहेगा 😡💪
रिलाइंस JIO ज़िंदाबाद 💪
रिलाइंस JIO ज़िंदाबाद 💪
रिलाइंस JIO ज़िन्दाबाद 💪
अशरफ अली :- तकरीरें बंद कर 😒 जब तक तू रिलाइंस JIO मुर्दाबाद नहीं कहेगा तो हमारे स्टाफ को कैसे यकीन होगा कि तू पक्का एयरटेल यूजर बन गया है 😠
तारा सिंह :- एयरटेल 4 G से ज्यादा यूजर रिलाइंस JIO के पास है 😡 उनके होठों 👄 दिलों ❤ की धड़कनें हमेशा यही कहती है 😡
रिलाइंस JIO ज़िंदाबाद 💪
तो क्या वो पक्के 4 G यूजर नहीं है 😡
अशरफ अली :- बाबागिरी बन्द कर 😡 अगर तू रिलाइंस JIO मुर्दाबाद नहीं कहेगा 😡 तो 4 G स्पीड हासिल नहीं कर सकता 😡
तारा सिंह :- बस बहुत हो गया 😡 अगर मैं फ्री डाटा और कालिंग के लिए सिर झुका सकता हूँ 😡 तो मैं सबके सिर काट 🔪 भी सकता हूँ 😡
😂😂😜😜😝😝😂😂😜😜😂
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अशरफ अली :- अगर तुम्हें एयरटेल 4 G कबूल है तो बोलो एयरटेल 4 G ज़िन्दाबाद 💪
तारा सिंह :- एयरटेल 4 G ज़िंदाबाद 🤝
अशरफ अली :- Hmmm कहो सुनील मित्तल ज़िन्दाबाद 💪
तारा सिंह :- सुनील ज़िंदाबाद 🤝
अशरफ अली :- अब रिलाइंस JIO मुर्दाबाद 😂
तारा सिंह :- अशरफ अली 😡 अशरफ अली 😡 अशरफ अली 😡 अशरफ अली 😡
ये बकवास क्यों कर रहे आप 😡😡😡😡😡
आपका एयरटेल 4 G ज़िंदाबाद है इससे हमें कोई ऐतराज नहीं 😡 लेकिन हमारा रिलाइंस JIO ज़िंदाबाद था , ज़िन्दाबाद है और ज़िन्दाबाद रहेगा 😡💪
रिलाइंस JIO ज़िंदाबाद 💪
रिलाइंस JIO ज़िंदाबाद 💪
रिलाइंस JIO ज़िन्दाबाद 💪
अशरफ अली :- तकरीरें बंद कर 😒 जब तक तू रिलाइंस JIO मुर्दाबाद नहीं कहेगा तो हमारे स्टाफ को कैसे यकीन होगा कि तू पक्का एयरटेल यूजर बन गया है 😠
तारा सिंह :- एयरटेल 4 G से ज्यादा यूजर रिलाइंस JIO के पास है 😡 उनके होठों 👄 दिलों ❤ की धड़कनें हमेशा यही कहती है 😡
रिलाइंस JIO ज़िंदाबाद 💪
तो क्या वो पक्के 4 G यूजर नहीं है 😡
अशरफ अली :- बाबागिरी बन्द कर 😡 अगर तू रिलाइंस JIO मुर्दाबाद नहीं कहेगा 😡 तो 4 G स्पीड हासिल नहीं कर सकता 😡
तारा सिंह :- बस बहुत हो गया 😡 अगर मैं फ्री डाटा और कालिंग के लिए सिर झुका सकता हूँ 😡 तो मैं सबके सिर काट 🔪 भी सकता हूँ 😡
😂😂😜😜😝😝😂😂😜😜😂
#COPY_PASTE
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Tuesday, 1 August 2017
Likha Hai Dil Pe Yeh Tere
Tune Mujhe Pehchaana Nahin
Jaana Main Koyi Anjaana Nahi
Aashiq Hoon Main Tere Naam Ka
Deewana Hoon Main Deewana Nahin
Tune Mujhe Pehchaana Nahin
Jaana Main Koyi Anjaana Nahi
Aashiq Hoon Main Tere Naam Ka
Deewana Hoon Main Deewana Nahin..
Naam Batake Tu Kehti Hai
Tu Woh Nahi Koi Aur Hai
Tune Di Thi Yeh Anguthi
Yeh Kehti Hai Tu Hai Joothi..
Kaata Na Tha Joh Nikal Gaya
Kaagaz Na Tha Jo Kho Gaya
Likha Hai Dil Pe Yeh Tere
Tu Hai Meri Main Hoon Tera..
Tune Mujhe Pehchaana Nahin
Jaana Main Koyi Anjaana Nahi
Aashiq Hoon Main Tere Naam Ka
Deewana Hoon Main Deewana Nahin...
Jaana Main Koyi Anjaana Nahi
Aashiq Hoon Main Tere Naam Ka
Deewana Hoon Main Deewana Nahin
Tune Mujhe Pehchaana Nahin
Jaana Main Koyi Anjaana Nahi
Aashiq Hoon Main Tere Naam Ka
Deewana Hoon Main Deewana Nahin..
Naam Batake Tu Kehti Hai
Tu Woh Nahi Koi Aur Hai
Tune Di Thi Yeh Anguthi
Yeh Kehti Hai Tu Hai Joothi..
Kaata Na Tha Joh Nikal Gaya
Kaagaz Na Tha Jo Kho Gaya
Likha Hai Dil Pe Yeh Tere
Tu Hai Meri Main Hoon Tera..
Tune Mujhe Pehchaana Nahin
Jaana Main Koyi Anjaana Nahi
Aashiq Hoon Main Tere Naam Ka
Deewana Hoon Main Deewana Nahin...
Super Market Ek Short Story
एक 20-22 साल का नौजवान सूपर मार्केट में दाखिल हुआ , कुछ खरीदारी कर ही रहा था कि उसे महसूस हुआ कि कोई औरत उसका पीछा कर रही है,मगर उसने अपना शक समझते हुए नज़रअंदाज़ किया और खरीदारी में मसरूफ हो गया,
लेकिन वह औरत मुस्ताकिल उसका पीछा कर रही थी, अबकी बार उस नौजवान से रहा न गया , वह अचानक उस औरत की तरफ मुड़ा और पूछा, मां जी खैरियत है ?
औरत बोली बेटा आपकी शक्ल मेरे मरहूम बेटे से बहुत ज्यादा मिलती जुलती है, मैं ना चाहते हुए भी आपको अपना बेटा समझते हुए आपके पीछे चल पड़ी, और आप ने मुझे मां जी कहा तो मेरे दिल के जज़्बात और खुशी बयां करने लायक नही, औरत ने यह कहा और उसकी आंखों से आंसू बहना शुरू हो गये।
नौजवान कहता है कोई बात नहीं मां जी आप मुझे अपना बेटा ही समझें।
वह औरत बोली कि बेटा क्या आप मुझे एक बार फिर मां जी कहोगे ?
नौजवान ने ऊंची आवाज़ से कहा, जी मां जी,
पर उस औरत ने ऐसा बर्ताव किया जैसे उसने सुना ही ना हो, नौजवान ने फिर ऊंची आवाज़ में कहा जी मां जी....
औरत ने सुना और नौजवान के दोनों हाथ पकड़ कर चूमे , अपने आंखों से लगाऐ और रोते हुए वहां से रुखसत हो गई।
नौजवान उस मंज़र को देख कर अपने आप पर काबू नहीं कर सका और उसकी आंखों से आंसू बहने लगे, वह अपनी खरीदारी पूरी करे बगैर ही वापस चल दिया।
काउंटर पर पहुंचा तो कैशियर ने दस हज़ार का बिल थमा दिया...
नौजवान ने पूछा दस हज़ार कैसे ?.
कैशियर ने कहा आठ सौ का बिल आपका है और नौ हजार दो सौ का आपकी मां के हैं, जिन्हें आप अभी मां जी मां जी कह रहे थे।
वह दिन और आज का दिन
नौजवान अपनी असली मां को भी मौसी कहता है।
😀😁😂
लेकिन वह औरत मुस्ताकिल उसका पीछा कर रही थी, अबकी बार उस नौजवान से रहा न गया , वह अचानक उस औरत की तरफ मुड़ा और पूछा, मां जी खैरियत है ?
नौजवान कहता है कोई बात नहीं मां जी आप मुझे अपना बेटा ही समझें।
वह औरत बोली कि बेटा क्या आप मुझे एक बार फिर मां जी कहोगे ?
नौजवान ने ऊंची आवाज़ से कहा, जी मां जी,
पर उस औरत ने ऐसा बर्ताव किया जैसे उसने सुना ही ना हो, नौजवान ने फिर ऊंची आवाज़ में कहा जी मां जी....
औरत ने सुना और नौजवान के दोनों हाथ पकड़ कर चूमे , अपने आंखों से लगाऐ और रोते हुए वहां से रुखसत हो गई।
नौजवान उस मंज़र को देख कर अपने आप पर काबू नहीं कर सका और उसकी आंखों से आंसू बहने लगे, वह अपनी खरीदारी पूरी करे बगैर ही वापस चल दिया।
काउंटर पर पहुंचा तो कैशियर ने दस हज़ार का बिल थमा दिया...
नौजवान ने पूछा दस हज़ार कैसे ?.
कैशियर ने कहा आठ सौ का बिल आपका है और नौ हजार दो सौ का आपकी मां के हैं, जिन्हें आप अभी मां जी मां जी कह रहे थे।
वह दिन और आज का दिन
नौजवान अपनी असली मां को भी मौसी कहता है।
😀😁😂
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