Sunday, 30 July 2017

विजिटिंग कार्ड एक कहानी

सोमवार का दिन था..... इतवार की छुट्टी के बाद जब सोमवार को आफिस जाना होता है तो बाकी दिनों की अपेक्षा थोड़ा सा उत्साह तो होता ही है ...... आफिस के लिए सलीके से तैयार होने का ..... थोड़ा संवरने का.... इसलिए आज साड़ी पहनी उसने ......लाल रंग की काटन की साड़ी जिसमें काले रंग धागों के फूलों की कढ़ाई थी .....सब कहते थे कि उस पर साड़ी अच्छी लगती है ......सो पहन ली और आफिस पहुंच गयी ......नये कपड़े पहन कर वैसे भी मन अपने आप कुछ प्रसन्न सा हो जाता है .....शायद कुछ मनोवैज्ञानिक प्रभाव होता है .....तो वो भी खुश थी आज ...सब कुछ सामान्य था आफिस में सुबह ....मगर फिर किसी वजह से कुछ ऐसा असामान्य घटित होता है उसके साथ कि बस अजीब स्थिति हो गयी उसकी ..... दिल बैठ सा गया तनाव के कारण ....रोना भी आया बहुत मगर आफिस था ये .....जहां रोया नहीं जा सकता था ..... बहुत सी अनापेक्षित चीजें हो जाती हैं कभी कभी वहां पर जहां आप काम करते हैं ....
शाम को काम की वजह से आफिस से निकलने में देर हो गई उसे ..... अंधेरा हो चुका था..... तनाव के कारण तबियत भी खराब थी कुछ ..... खैर घर जाने के लिए सिटी बस पकड़ी उसने .....कोई १२-१४ सवारी ही रही होंगी बस में .....वो जाकर खिड़की की तरफ चेहरा कर के बैठ गई .... जेहन में आफिस में हुई घटना घूम रही थी .... कभी जब कुछ बुरा घटित होता है तो उसके साथ - साथ पूर्व में घटित हुई उसी प्रकार की अन्य खराब चीजें भी दिमाग में रिकाल होने लगती हैं और तनाव का स्तर तब कई गुना बढ़ जाता है .......यही उसके साथ हो रहा था ......तनाव साफ चेहरे पर दिखाई देने लगा था ......चेहरा बुखार से तपकर लाल हो चुका था ....हाथ पैर कांप से रहे थे उसके ..... आंखों में आंसू आ रहे थे ...रोकने की कोशिश की कई बार .....मगर फिर भी आंखों की कोरों से ढलक ही गए ..... अंधेरा था तो शायद बस में मौजूद लोगों ने देख नहीं पाया ये .....मगर बराबर वाली सीट पर एक लड़का बैठा था जो उसे बराबर नोटिस कर रहा था ..... पता नहीं उसके चेहरे को .....लाल साड़ी में लिपटी सुंदरता को .....या फिर उसकी तकलीफ़ को ....उस दर्द को जो उसके चेहरे पर दिख रहा था ....या उन आंसुओं को जो उसकी आंखों में कुछ पल ठहरे हुए से थे .....जो भी हो लड़का कभी उसके तपते हुए चेहरे को देखता और कभी कांपती हुई उंगलियों को .....
कुछ देर बाद दो लोगों को छोड़कर बाकी सवारी बस से उतर गई थी .....बस में अब शांति थी .......इधर उसे आभास हो गया था कि ये लड़का उसे नोटिस कर रहा है ..... पता नहीं क्यों लड़के के नोटिस करने के कारण वह ज्यादा भावुक हो गई ....... ऐसा लगा जैसे वो लड़का बिना कुछ कहे ही उसकी तकलीफ़ उसकी मनोस्थिति समझ रहा है ...... अंजान होकर भी पता नहीं कैसे दोनों एक - दूसरे के मन को समझ ले रहे थे .... उसे ऐसा लग रहा था कि लड़के से अपना सब दर्द कह दे ...... उसके पास बैठ के रो ले ..... और लड़के के भाव ऐसे थे मानों वो उसका दर्द उसकी तकलीफ़ जानना और बांट लेना चाहता हो .....कभी कोई अंजान शख्स भी ऐसा मिल जाता है कि आप उससे पहली बार में ही अपनी जिंदगी की वो बातें वो तकलीफ़े कह जाते हैं जो आप अपने बहुत खास .....बहुत नजदीक इंसान से भी नहीं कह पाते........ होता है ऐसा अक्सर .....
अगला स्टाप आते ही उसके मन में आया कि जो दो सवारी बची है वो भी उतर जाएं काश.....उन दोनों के बीच में मौन रहे बस..... लड़का भी शायद ऐसा ही चाहता था और यही हुआ .....
अब सिर्फ वो दोनों ही बचे थे बस में .....एक घंटे के सफर में एक या दो बार मात्र एक पल के लिए ही दोनों की नजरें टकराई होंगी अंजाने में ....अगला स्टाप आने के थोड़ा पहले लड़के ने अपना बटुआ निकाला और उससे कुछ निकाल कर अपनी सीट पर रख दिया .....लड़की ने चेहरा खिड़की की तरफ कर लिया ......लड़का चुपचाप बस से उतर गया और उतरने के बाद उसने खिड़की की तरफ देखा ....... आखिरी बार दोनों की नज़रें मिली ......जो शायद बहुत कुछ कहना और सुनना चाहती थीं एक दूसरे से .....बस आगे बढ़ चुकी थी ...... लड़की ने लड़के की सीट की तरफ देखा .....विजिटिंग कार्ड रखा हुआ था ..... उसने उठा कर देखा और पर्स में रख लिया .......घर आकर फिर से देखा उस विजिटिंग कार्ड को जिस पर उसका नाम और मोबाइल नंबर लिखा था ........फोन तो नहीं किया उसने कभी उस लड़के को मगर वो विजिटिंग कार्ड आज भी अपने पर्स में संभाल कर रखा हुआ है ........!!

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