Sunday, 30 July 2017

वृंदावन के वात्सल्य ग्राम

बाबर के ढांचे (बाबरी मस्जिद) के गिराए जाने वाले नेक कार्य के लिए जिन साध्वी ऋतम्भरा जी को मीडिया बदनाम कर रही थी वो उनके इन पावन कार्य पर मौन है,
इन बच्चों से उनका कोई नाता नहीं। कहां से आया, किसने जन्मा कुछ पता नहीं। यहां रिश्तों का आत्मिक संसार है। कोई रक्त संबंधी नहीं है। पर सब मां की ममता से बंधे हैं। वृंदावन के वात्सल्य ग्राम में उन तमाम बच्चों को यशोदा बन मां पाल रही हैं, जिनके खून के रिश्तों ने नाता तोड़ लिया। यहां मां की लोरी है तो नानी की कहानियां भी। मौसी का प्यार तो बहनों का दुलार भी मां का प्यार है तो दादी और नानी की कहानियां भी हैं।
वात्सल्य ग्राम के द्वार पर पालने में अज्ञात नवजात बच्चे के आते ही यहां बच्चे के जन्म की तरह खुशी मनाई जाती है। पालने से वात्सल्य ग्राम के आंगन में आने के बाद बच्चे का स्वास्थ्य परीक्षण होता है। एक वर्ष तक उसकी विशेष देखभाल की जाती है। इसके पश्चात गोकुलम में बच्चे को एक मां, मौसी, नानी और पिता का प्यार मिलने लगता है। भले ही खून के रिश्ते उससे दूर हों, लेकिन एक बच्चे के लिए सबसे जरूरी उसकी मां का पूरा वात्सल्य मिलता है। वर्तमान में यहां करीब दो सौ बच्चे हैं।
मां भी इन बच्चों के दुख, सुख को अपना दुख-सुख मानकर कदम-कदम पर पर उनके साथ रहती हैं। इतना ही नहीं मां इन बच्चों के सिर्फ बड़े होने और पालन-पोषण तक सीमित नहीं हैं, बल्कि मां और संतान का यह दुलारभरा संबंध जीवन पर्यंत तक रहता है। यदि मां को दुख होता है तो बच्चे भी उसे दूर करने का हर संभव प्रयास करते हैं। वे अपना सबकुछ देने को तैयार रहते हैं। मां की ममता व दुलार और ऐसा संतान का प्यार वात्यल्य के आंगन में पल्लवित हो रहा है।
यहां करीब 200 ऐसे बच्चे हैं, जो पालने में नवजात या कुछ ही समय के जन्मे पाए गए। पालने में बच्चे के आने पर सायरन बज जाता है। तभी गोकुलम में इसकी सूचना जाती है। गोकुलम से पूजा की थाली आती है और बच्चे के रूप में नए मेहमान के आने पर तिलक किया जाता है और फिर नवजन्म की तरह उत्सव मनाया जाता है। इसके बाद बच्चा वात्सल्य परिवार का सदस्य बन जाता है। यह विश्व का अनोखा ऐसा प्रकल्प है, जिसमें न सिर्फ बच्चे को संस्कारित परिवार और सभी रिश्ते मिलते हैं, बल्कि जीवनभर वह इस परिवार का सदस्य होता है।

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