Labels
- Bank Jobs
- Computer Tricks
- Download Android Apps And Games
- Earn Money
- Educational
- Facts
- Funny Tricks
- Gadget
- Google+
- GST
- Har Kuch Sab Kuch
- Historic
- Home
- I hate Cricket
- Indian
- Internet
- Internet Security
- Kids Stories
- Learn English
- Mobile
- MP3 Songs
- PC TRICKS
- Pictures
- Security
- Smart Tips
- SMS ZONE
- Software
- Songs
- UPSC
- Video
- Whatsapo
- Whatsapp Status Video
- Windows Phone
- एक और कहानी
- कौन बनेगा करोड़पति
- निबंध
- शायरी
- सामान्य जानकारी
Monday, 31 July 2017
BCCI agar Team India ki Jersey par VIVO hai to Hum Match dekhna Band kar denge
Montu Bhandari
Yes baycot china BCCI also need to understand things which are happening on dhoklam border way we advertise china product please support army if army not work there job so how to play blody how to safe try to understand bcci and players also support Indian army to Bycott product show some credibility #BCCBANOPPO
Pawan Beniwal
BCCI ,is not less than East India Company ,group of Princely people from business and political tycoons who are sucking blood from poor Indian public which is exploited in the name of Indian pride.
BCCI Assets should put under national flag n constitution of India. Then we can promote other sports and sports' infrastructure in the country.
Students in universities should focus on national issues and resources.
We don't see the stale n ailing roots of the issue but just talk about sponsorship about Chinese products.
WHO ARE ANURAAG THAKUR,RANBIR SINGH MAHRNDRA ,ARUN JAITLY , S SRINIWAS and SHARAD PAWAAR .
All cricket thekedaars of 29 states are close partners but political rivals in parliament .
Let us start a campaign to bring cricket under parliament
Rama Krishna Koila
Boycott chinese. Stop taking sponsorships from chinese companies, indian cricket team is beacause of criceters talent and huge indian viwership not bcoz of sponsorhip. Stop these tricks.
Priyanka Mondal
Boycott means boycott all d things which products made by china....r a india ka bhi to koi ijjat honi chahiye na...kab tak aise khud ko bikte rahoge yr...
Easwar PS
Don't worry INDIANS don't care about their jawans. ..they are more bothered about money making biz...There is less or no sponsers in india
Madhur Meena
Hindustan mai sb bhot jaldi bik jate hai or jo subse pehle bikta hai wo hai sports...
Jatin Rawal
Tell them india will sponsor them whole india create an account we will put our money in their account.
M G Hegde
BCCI IS BORN FOR EARNING MONEY THEY DON'T HAVE ANY RESPECT TO INDIA.....
Sunday, 30 July 2017
वृंदावन के वात्सल्य ग्राम
बाबर के ढांचे (बाबरी मस्जिद) के गिराए जाने वाले नेक कार्य के लिए जिन साध्वी ऋतम्भरा जी को मीडिया बदनाम कर रही थी वो उनके इन पावन कार्य पर मौन है,
इन बच्चों से उनका कोई नाता नहीं। कहां से आया, किसने जन्मा कुछ पता नहीं। यहां रिश्तों का आत्मिक संसार है। कोई रक्त संबंधी नहीं है। पर सब मां की ममता से बंधे हैं। वृंदावन के वात्सल्य ग्राम में उन तमाम बच्चों को यशोदा बन मां पाल रही हैं, जिनके खून के रिश्तों ने नाता तोड़ लिया। यहां मां की लोरी है तो नानी की कहानियां भी। मौसी का प्यार तो बहनों का दुलार भी मां का प्यार है तो दादी और नानी की कहानियां भी हैं।
वात्सल्य ग्राम के द्वार पर पालने में अज्ञात नवजात बच्चे के आते ही यहां बच्चे के जन्म की तरह खुशी मनाई जाती है। पालने से वात्सल्य ग्राम के आंगन में आने के बाद बच्चे का स्वास्थ्य परीक्षण होता है। एक वर्ष तक उसकी विशेष देखभाल की जाती है। इसके पश्चात गोकुलम में बच्चे को एक मां, मौसी, नानी और पिता का प्यार मिलने लगता है। भले ही खून के रिश्ते उससे दूर हों, लेकिन एक बच्चे के लिए सबसे जरूरी उसकी मां का पूरा वात्सल्य मिलता है। वर्तमान में यहां करीब दो सौ बच्चे हैं।
मां भी इन बच्चों के दुख, सुख को अपना दुख-सुख मानकर कदम-कदम पर पर उनके साथ रहती हैं। इतना ही नहीं मां इन बच्चों के सिर्फ बड़े होने और पालन-पोषण तक सीमित नहीं हैं, बल्कि मां और संतान का यह दुलारभरा संबंध जीवन पर्यंत तक रहता है। यदि मां को दुख होता है तो बच्चे भी उसे दूर करने का हर संभव प्रयास करते हैं। वे अपना सबकुछ देने को तैयार रहते हैं। मां की ममता व दुलार और ऐसा संतान का प्यार वात्यल्य के आंगन में पल्लवित हो रहा है।
यहां करीब 200 ऐसे बच्चे हैं, जो पालने में नवजात या कुछ ही समय के जन्मे पाए गए। पालने में बच्चे के आने पर सायरन बज जाता है। तभी गोकुलम में इसकी सूचना जाती है। गोकुलम से पूजा की थाली आती है और बच्चे के रूप में नए मेहमान के आने पर तिलक किया जाता है और फिर नवजन्म की तरह उत्सव मनाया जाता है। इसके बाद बच्चा वात्सल्य परिवार का सदस्य बन जाता है। यह विश्व का अनोखा ऐसा प्रकल्प है, जिसमें न सिर्फ बच्चे को संस्कारित परिवार और सभी रिश्ते मिलते हैं, बल्कि जीवनभर वह इस परिवार का सदस्य होता है।
इन बच्चों से उनका कोई नाता नहीं। कहां से आया, किसने जन्मा कुछ पता नहीं। यहां रिश्तों का आत्मिक संसार है। कोई रक्त संबंधी नहीं है। पर सब मां की ममता से बंधे हैं। वृंदावन के वात्सल्य ग्राम में उन तमाम बच्चों को यशोदा बन मां पाल रही हैं, जिनके खून के रिश्तों ने नाता तोड़ लिया। यहां मां की लोरी है तो नानी की कहानियां भी। मौसी का प्यार तो बहनों का दुलार भी मां का प्यार है तो दादी और नानी की कहानियां भी हैं।
वात्सल्य ग्राम के द्वार पर पालने में अज्ञात नवजात बच्चे के आते ही यहां बच्चे के जन्म की तरह खुशी मनाई जाती है। पालने से वात्सल्य ग्राम के आंगन में आने के बाद बच्चे का स्वास्थ्य परीक्षण होता है। एक वर्ष तक उसकी विशेष देखभाल की जाती है। इसके पश्चात गोकुलम में बच्चे को एक मां, मौसी, नानी और पिता का प्यार मिलने लगता है। भले ही खून के रिश्ते उससे दूर हों, लेकिन एक बच्चे के लिए सबसे जरूरी उसकी मां का पूरा वात्सल्य मिलता है। वर्तमान में यहां करीब दो सौ बच्चे हैं।
मां भी इन बच्चों के दुख, सुख को अपना दुख-सुख मानकर कदम-कदम पर पर उनके साथ रहती हैं। इतना ही नहीं मां इन बच्चों के सिर्फ बड़े होने और पालन-पोषण तक सीमित नहीं हैं, बल्कि मां और संतान का यह दुलारभरा संबंध जीवन पर्यंत तक रहता है। यदि मां को दुख होता है तो बच्चे भी उसे दूर करने का हर संभव प्रयास करते हैं। वे अपना सबकुछ देने को तैयार रहते हैं। मां की ममता व दुलार और ऐसा संतान का प्यार वात्यल्य के आंगन में पल्लवित हो रहा है।
यहां करीब 200 ऐसे बच्चे हैं, जो पालने में नवजात या कुछ ही समय के जन्मे पाए गए। पालने में बच्चे के आने पर सायरन बज जाता है। तभी गोकुलम में इसकी सूचना जाती है। गोकुलम से पूजा की थाली आती है और बच्चे के रूप में नए मेहमान के आने पर तिलक किया जाता है और फिर नवजन्म की तरह उत्सव मनाया जाता है। इसके बाद बच्चा वात्सल्य परिवार का सदस्य बन जाता है। यह विश्व का अनोखा ऐसा प्रकल्प है, जिसमें न सिर्फ बच्चे को संस्कारित परिवार और सभी रिश्ते मिलते हैं, बल्कि जीवनभर वह इस परिवार का सदस्य होता है।
व्यवस्था परिवर्तन - बैंकिग उद्योग की आवश्यकता
कुछ विद्वानों का मत है कि व्यवस्था परिवर्तन हेतु युवा बैंक कर्मियों को यूनियन में सक्रिय रूप से भागीदारी करनी चाहिए -यूनियन के चुनाव में भाग लेना चाहिए और प्रजातांत्रिक पद्धति से नेताओं को बदल देना चाहिए । सैद्धांतिक दृष्टिकोण से यह बात केवल काग़ज़ पर ही सही नज़र आती है -बैंकिंग उद्योग में इसका यथार्थ से कोई नाता नहीं है । कैसे ? इसे हाल के उदाहरणों से समझें ।
बैंकिंग उद्योग में जो सबसे बड़ी लाल झण्डे वाली यूनियन है -उसके सबसे बड़े नेता जी का सर्वाधिक विरोध हुआ । यहाँ तक कि उसी यूनियन के लोगों ने ग्रूप बनाए और नेता जी को हटाने का अभियान चलाया -यदि आप उसी यूनियन का सर्वे करेंगे तो पाएँगे कि नेता जी का यूनियन में व्यापक विरोध है और यदि सदस्यों को सीधे मत देने का अधिकार मिल जाय तो नेता जी किसी हालत में नहीं जीत पाएँगे । अब ज़रा यथार्थ पर नज़र डालिए -नेता जी ने चेन्नई में यूनियन के भव्य अधिवेशन का आयोजन किया और सर्वसम्मति से फिर चुन लिए गए और अब ११वें वेतन समझौते में हमेशा की तरह निर्णायक भूमिका अदा करने को तैयार हैं ।
अब ज़रा दूसरे नम्बर की यूनियन पर निगाह डालें -इस यूनियन की असली ताक़त स्टेट बैंक ऑफ़ इंडिया है जहाँ फ़ेडरेशन का एकाधिकार है -उसके बाद बैंक ऑफ़ बड़ौदा और एक आध बैंकों में यह यूनियन बहुमत में है -अकेले स्टेट बैंक के बूते यह यूनियन लगभग एक तिहाई बैंक कर्मियों की संख्या अर्जित कर लेती है और इस पर एकाधिकार भी स्टेट बैंक की फ़ेडरेशन का है और एक तरह से महामंत्री का महत्वपूर्ण पद फ़ेडरेशन के लिए आरक्षित है । बड़ी यूनियन की तरह यहाँ चुनाव की औपचारिकता भी नहीं होती और स्टेट बैंक की फ़ेडरेशन जिस नाम को तय कर देती है वह रातों रात इसका महामन्त्री हो जाता है ।
यह दो यूनियन मिल कर लगभग ८०% बैंक कर्मियों का प्रतिनिधित्व करती हैं -शेष २०% बैंक कर्मी तीन यूनियनों में विभाजित हैं -इन यूनियनों में से एक को छोड़ बाँकी दो यूनियनों के सामने नेतृत्व का संकट है -वहाँ नेता पद छोड़ना चाहते हैं लेकिन कोई दूसरा उस चुनौती का सामना करने के लिए आगे आने को तैयार नहीं है ।
अब ज़रा राष्ट्रीय स्तर पर द्विपक्षीय समझौते के लिए जो खेल चलता है उसे ठीक से समझ लें -क्योंकि दो नम्बर की यूनियन की अधिकांश सदस्यता स्टेट बैंक में है जहाँ द्विपक्षीय समझौते के बाद स्टेट बैंक में अलग से अतिरिक्त लाभ देने की परम्परा है -इसलिए यह यूनियन बड़ी वाली यूनियन का कोई विरोध नहीं करती बल्कि अपरोक्ष रूप से उनका समर्थन करती है । उसका एकमात्र उद्देश्य होता है कि द्विपक्षीय समझौता तेज़ी से सम्पन्न हो ताकि स्टेट बैंक में अपने सदस्यों को अतिरिक्त लाभ दिलवा सकें । दूसरे नम्बर की यूनियन द्वारा पहले नम्बर की यूनियन का समर्थन करने के रहस्य से पर्दा नौवें द्विपक्षीय समझौते के बाद उठा जब गणपति सुब्रमणीयन भाई की कैनारा बैंक की एक छोटी सी यूनियन ने असीम बहादुरी का परिचय देते हुए पेन्शन में अंशदान को माननीय मद्रास उच्च न्यायालय में समझौते पर हस्ताक्षर करने वाली सभी यूनियनों को विपक्षी बनाते हुए चुनौती दी -तब आश्चर्यजनक तरीक़े से दूसरे नम्बर की यूनियन ने उसकी ओर से जवाब व शपथ पत्र देने का अधिकार बड़ी यूनियन के बड़े नेता जी को दे दिया और उन्होंने दूसरे नम्बर की यूनियन की ओर से भी जवाब दाख़िल किया ।
यह जान लेने के बाद कि लगभग ८०% बैंक कर्मियों का प्रतिनिधित्व परिस्थितिजन्य परोक्ष अथवा अपरोक्ष तरीक़े से बड़े नेता जी को हांसिल हो जाता है -अब अधिकारियों के संघठन पर ग़ौर करते हैं । यहाँ जो एक नम्बर की यूनियन है उसकी स्थिति कर्मकारों की दो नम्बर की यूनियन के समान है क्योंकि यह यूनियन स्टेट बैंक फ़ेडरेशन की तरह स्टेट बैंक में प्रचंड बहुमत में है -वैसे तो यह लगभग सभी बैंकों में प्रचंड बहुमत में है लेकिन अकेले स्टेट बैंक की सदस्य संख्या सब पर भारी है इसलिए तूती स्टेट बैंक के नेता की बोलती है -स्टेट बैंक में अतिरिक्त सुविधा पा लेने वाली युक्ति यहाँ भी कर्मकारों की सबसे बड़ी यूनियन को परोक्ष अथवा अपरोक्ष रूप से समर्थन करवा देती है । जो दूसरे नम्बर की यूनियन है वह तो कर्मकारों की बड़ी यूनियन द्वारा ही बनायी गयी है और उसकी सदस्य संख्या भी इतनी नहीं कि वह बड़े नेता जी का विरोध करने का साहस जुटा सके । जो तीसरे नम्बर की यूनियन है उसके नेता जी अधिकारियों के सबसे क़ाबिल नेता हैं जिसका प्रमाण उस बैंक के अधिकारियों को मिलने वाली सुविधाएँ हैं जहाँ यह यूनियन बहुमत में है । इन नेता जी को लेकर तब समस्या पैदा हो गयी जब IBA ने अधिकारियों के मामले में सेवानिवृत्त अधिकारी नेता से वार्ता करने से मना कर दिया । एक दूसरे के धुर विरोधी होने के बावजूद उस वक़्त कर्मकारों के बड़े नेता जी कूटनीतिक तरीक़े से इनके पक्ष में आ गए और उन्होंने आईबीए पर दवाब बना उसे इन नेताजी से वार्ता हेतु मना लिया -तब से यह नेता जी भी बड़े नेता जी के समर्थक हो गए । जो चौथी यूनियन है उसकी सदस्य संख्या नगण्य है ।
इस तरह बड़ी यूनियन के बड़े नेता जी को ९ में से ५ यूनियनों का समर्थन हांसिल है जो द्विपक्षीय समझौते में नेता जी को निर्णायक भूमिका में ला देती है और नेता जी आकंठ घमण्ड से चूर हो कर मनमानी करते हैं -उनके ख़िलाफ़ अगर अभी तक कोई आवाज़ उठी है तो वह श्री सुभाष सावन्त जी की आवाज़ है लेकिन दिक़्क़त यह है कि न तो सावन्त जी के पास प्रचुर संख्या है और न ही उपरोक्त कारणों से उन्हें अपेक्षित सहयोग मिलता है -नौवें और दसवें समझौते के दौरान श्री सावन्त द्वारा बैंक कर्मियों के हितों की ख़ातिर मौखिक और लिखित विरोध समर्थन के अभाव में निष्फल चला गया ।
अब ज़रा सोचिए और चिंतन कीजिए कि इन परिस्थितियों में युवा बैंक कर्मी क्या भूमिका अदा कर सकते हैं ? वी बैंकर्स के आंदोलन के दौरान जो युवा नेता उभरे उन्हें वी बैंकर्स के आंदोलन को कमज़ोर करने के उद्देश्य से यूनियनों में समायोजित कर लिया गया और उन्हें बैंक स्तर की यूनियनों में सहायक मंत्री संघठन मंत्री जैसे प्रभावहीन पदों को झुनझुना पकड़ा दिया गया और उन्हें कल का नेता कहते हुए झूठी तारीफ़ की जाती है । जहाँ जहाँ वी बैंकर्स के युवाओं ने स्थापित नेताओं को चुनौती देते हुए मुख्य पदों पर दावा ठोंका है वहाँ वहाँ या तो बेइमानी हुई है या स्थापित नेता युवा नेता को प्रबंधन से मिल कर शिकार बनाने को उतारू हैं ।
कुल मिलाकर स्थितियों में न तो कोई परिवर्तन हुआ है और न ही कोई सम्भावना है -ऐसे में केंद्रीय सरकार के कर्मचारियों के बराबर वेतन पेन्शन और अन्य सुविधाएँ पाने की अभिलाषा एक दिवास्वप्न के अलावा कुछ नहीं है ।
बैंकिंग उद्योग में जो सबसे बड़ी लाल झण्डे वाली यूनियन है -उसके सबसे बड़े नेता जी का सर्वाधिक विरोध हुआ । यहाँ तक कि उसी यूनियन के लोगों ने ग्रूप बनाए और नेता जी को हटाने का अभियान चलाया -यदि आप उसी यूनियन का सर्वे करेंगे तो पाएँगे कि नेता जी का यूनियन में व्यापक विरोध है और यदि सदस्यों को सीधे मत देने का अधिकार मिल जाय तो नेता जी किसी हालत में नहीं जीत पाएँगे । अब ज़रा यथार्थ पर नज़र डालिए -नेता जी ने चेन्नई में यूनियन के भव्य अधिवेशन का आयोजन किया और सर्वसम्मति से फिर चुन लिए गए और अब ११वें वेतन समझौते में हमेशा की तरह निर्णायक भूमिका अदा करने को तैयार हैं ।
अब ज़रा दूसरे नम्बर की यूनियन पर निगाह डालें -इस यूनियन की असली ताक़त स्टेट बैंक ऑफ़ इंडिया है जहाँ फ़ेडरेशन का एकाधिकार है -उसके बाद बैंक ऑफ़ बड़ौदा और एक आध बैंकों में यह यूनियन बहुमत में है -अकेले स्टेट बैंक के बूते यह यूनियन लगभग एक तिहाई बैंक कर्मियों की संख्या अर्जित कर लेती है और इस पर एकाधिकार भी स्टेट बैंक की फ़ेडरेशन का है और एक तरह से महामंत्री का महत्वपूर्ण पद फ़ेडरेशन के लिए आरक्षित है । बड़ी यूनियन की तरह यहाँ चुनाव की औपचारिकता भी नहीं होती और स्टेट बैंक की फ़ेडरेशन जिस नाम को तय कर देती है वह रातों रात इसका महामन्त्री हो जाता है ।
यह दो यूनियन मिल कर लगभग ८०% बैंक कर्मियों का प्रतिनिधित्व करती हैं -शेष २०% बैंक कर्मी तीन यूनियनों में विभाजित हैं -इन यूनियनों में से एक को छोड़ बाँकी दो यूनियनों के सामने नेतृत्व का संकट है -वहाँ नेता पद छोड़ना चाहते हैं लेकिन कोई दूसरा उस चुनौती का सामना करने के लिए आगे आने को तैयार नहीं है ।
अब ज़रा राष्ट्रीय स्तर पर द्विपक्षीय समझौते के लिए जो खेल चलता है उसे ठीक से समझ लें -क्योंकि दो नम्बर की यूनियन की अधिकांश सदस्यता स्टेट बैंक में है जहाँ द्विपक्षीय समझौते के बाद स्टेट बैंक में अलग से अतिरिक्त लाभ देने की परम्परा है -इसलिए यह यूनियन बड़ी वाली यूनियन का कोई विरोध नहीं करती बल्कि अपरोक्ष रूप से उनका समर्थन करती है । उसका एकमात्र उद्देश्य होता है कि द्विपक्षीय समझौता तेज़ी से सम्पन्न हो ताकि स्टेट बैंक में अपने सदस्यों को अतिरिक्त लाभ दिलवा सकें । दूसरे नम्बर की यूनियन द्वारा पहले नम्बर की यूनियन का समर्थन करने के रहस्य से पर्दा नौवें द्विपक्षीय समझौते के बाद उठा जब गणपति सुब्रमणीयन भाई की कैनारा बैंक की एक छोटी सी यूनियन ने असीम बहादुरी का परिचय देते हुए पेन्शन में अंशदान को माननीय मद्रास उच्च न्यायालय में समझौते पर हस्ताक्षर करने वाली सभी यूनियनों को विपक्षी बनाते हुए चुनौती दी -तब आश्चर्यजनक तरीक़े से दूसरे नम्बर की यूनियन ने उसकी ओर से जवाब व शपथ पत्र देने का अधिकार बड़ी यूनियन के बड़े नेता जी को दे दिया और उन्होंने दूसरे नम्बर की यूनियन की ओर से भी जवाब दाख़िल किया ।
यह जान लेने के बाद कि लगभग ८०% बैंक कर्मियों का प्रतिनिधित्व परिस्थितिजन्य परोक्ष अथवा अपरोक्ष तरीक़े से बड़े नेता जी को हांसिल हो जाता है -अब अधिकारियों के संघठन पर ग़ौर करते हैं । यहाँ जो एक नम्बर की यूनियन है उसकी स्थिति कर्मकारों की दो नम्बर की यूनियन के समान है क्योंकि यह यूनियन स्टेट बैंक फ़ेडरेशन की तरह स्टेट बैंक में प्रचंड बहुमत में है -वैसे तो यह लगभग सभी बैंकों में प्रचंड बहुमत में है लेकिन अकेले स्टेट बैंक की सदस्य संख्या सब पर भारी है इसलिए तूती स्टेट बैंक के नेता की बोलती है -स्टेट बैंक में अतिरिक्त सुविधा पा लेने वाली युक्ति यहाँ भी कर्मकारों की सबसे बड़ी यूनियन को परोक्ष अथवा अपरोक्ष रूप से समर्थन करवा देती है । जो दूसरे नम्बर की यूनियन है वह तो कर्मकारों की बड़ी यूनियन द्वारा ही बनायी गयी है और उसकी सदस्य संख्या भी इतनी नहीं कि वह बड़े नेता जी का विरोध करने का साहस जुटा सके । जो तीसरे नम्बर की यूनियन है उसके नेता जी अधिकारियों के सबसे क़ाबिल नेता हैं जिसका प्रमाण उस बैंक के अधिकारियों को मिलने वाली सुविधाएँ हैं जहाँ यह यूनियन बहुमत में है । इन नेता जी को लेकर तब समस्या पैदा हो गयी जब IBA ने अधिकारियों के मामले में सेवानिवृत्त अधिकारी नेता से वार्ता करने से मना कर दिया । एक दूसरे के धुर विरोधी होने के बावजूद उस वक़्त कर्मकारों के बड़े नेता जी कूटनीतिक तरीक़े से इनके पक्ष में आ गए और उन्होंने आईबीए पर दवाब बना उसे इन नेताजी से वार्ता हेतु मना लिया -तब से यह नेता जी भी बड़े नेता जी के समर्थक हो गए । जो चौथी यूनियन है उसकी सदस्य संख्या नगण्य है ।
इस तरह बड़ी यूनियन के बड़े नेता जी को ९ में से ५ यूनियनों का समर्थन हांसिल है जो द्विपक्षीय समझौते में नेता जी को निर्णायक भूमिका में ला देती है और नेता जी आकंठ घमण्ड से चूर हो कर मनमानी करते हैं -उनके ख़िलाफ़ अगर अभी तक कोई आवाज़ उठी है तो वह श्री सुभाष सावन्त जी की आवाज़ है लेकिन दिक़्क़त यह है कि न तो सावन्त जी के पास प्रचुर संख्या है और न ही उपरोक्त कारणों से उन्हें अपेक्षित सहयोग मिलता है -नौवें और दसवें समझौते के दौरान श्री सावन्त द्वारा बैंक कर्मियों के हितों की ख़ातिर मौखिक और लिखित विरोध समर्थन के अभाव में निष्फल चला गया ।
अब ज़रा सोचिए और चिंतन कीजिए कि इन परिस्थितियों में युवा बैंक कर्मी क्या भूमिका अदा कर सकते हैं ? वी बैंकर्स के आंदोलन के दौरान जो युवा नेता उभरे उन्हें वी बैंकर्स के आंदोलन को कमज़ोर करने के उद्देश्य से यूनियनों में समायोजित कर लिया गया और उन्हें बैंक स्तर की यूनियनों में सहायक मंत्री संघठन मंत्री जैसे प्रभावहीन पदों को झुनझुना पकड़ा दिया गया और उन्हें कल का नेता कहते हुए झूठी तारीफ़ की जाती है । जहाँ जहाँ वी बैंकर्स के युवाओं ने स्थापित नेताओं को चुनौती देते हुए मुख्य पदों पर दावा ठोंका है वहाँ वहाँ या तो बेइमानी हुई है या स्थापित नेता युवा नेता को प्रबंधन से मिल कर शिकार बनाने को उतारू हैं ।
कुल मिलाकर स्थितियों में न तो कोई परिवर्तन हुआ है और न ही कोई सम्भावना है -ऐसे में केंद्रीय सरकार के कर्मचारियों के बराबर वेतन पेन्शन और अन्य सुविधाएँ पाने की अभिलाषा एक दिवास्वप्न के अलावा कुछ नहीं है ।
दूसरीऔरत - एक कहानी
चाहे कुछ भी हो जाये बुआ,उस औरत को मैं कभी भी अपनी "माँ" स्वीकार नही करूँगी ,
४५ साल की कुँवारी औरत हम बच्चों को माँ का प्यार कैसे दे सकती है ?
वो बच्चों का दर्द क्या समझेगी , .!!
अरे हाँ मैं उसे क्यूँ कोस रही हूँ , मुझे तो शर्म आती है पापा की सोच पर हम बच्चों का देख भाल करने के आड़ में ,अपना सुख पूरा करना चाहते है। आपको ना जाने क्यूँ इतनी सी बात समझ नही आ रही है ।
शांति से सोच रिया तुम दोनों बहने तो शादी करके अपने घर चले जाओगी २-४ सालों में उसके बाद भैया अकेले रह जायेंगे ...कहते हुए कमला उसके सर को प्यार से सहलाने लगी ।तभी रिया बोली बुआ अगर माँ की जगह पापा को कुछ हो जाता तो भी आप यही बात इतनी आसानी से माँ के लिए कहती ,??
कमला बोली शायद नही कहती क्योंकि स्त्री अंदर से बहुत मजबूत होती है हर मुश्किल का सामना बड़ी साहस के साथ कर सकती है घर बाहर दोनो को संभाल सकती है , लेकिन पुरुष के लिए एकाकी जीवन बहुत मुश्किल होता है ।
ठीक है बुआ आपको पापा सही लगते है तो आप उनका साथ दे सकती हो ,पर हम दोनो बहने इस रिश्ते को कभी नही स्वीकारेंगे वो "दूसरी औरत" हमारी माँ कभी नही बन सकती कहते हुए रिया कमरे से बाहर चली गयी।
सुख के समय को बीतते कहाँ समय लगता है , देखते -देखते आठ साल हो गए ,दोनो बेटियों की शादी हो गयी दोनो ही अपनी गृहस्थी में व्यस्त हो गयी । पर शादी के बाद इतने सालों में दोनो ने कभी मायके का रुख नही किया । पापा को भी माफ नही कर पाई ...............
एक दिन दोपहर को रमाकांत जी घर का डोर बेल बजा दरवाज़ा रमाकांत जी की पत्नी ने खोला और सामने रिया को खड़े देखकर हैरान हो गयी जब तक कुछ समझ पाती ,रिया उनके पैरों में गिर कर रोने लगी मुझे माफ़ कर दो माँ मुझसे बहुत बड़ी भूल हो गई,
आप महान हो माँ मुझे माफ़ कर दो।
उठो बेटी कहकर उन्होंने रिया को गले से लगा लियाऔर उनके माथे को पागलो की तरह चूमने लगी .........
रमाकांत जी तंज कसते हुए बोले ये दूसरी औरत तुम्हारी माँ कब से हो गयी ?
रिया सिसकते हुए बोली आपको तो सब पता है पापा फिर आप ऐसा क्यूँ बोल रहे हो ...!
ओह, तो आज तुम्हे पता चल गया कि तुम्हारे पति को किडनी दान कर तुम्हारे सुहाग को जीवन दान देने वाला , अजनबी कोई और नही बल्कि ये दूसरी औरत ही है कहते हुए व्यंग्यात्मक मुस्कान रमाकांत जी के चेहरे पर फैल गई.... तुम जैसी कुछ लोगों की वज़ह से ही दुनिया कहती है कि ....."औरत ही औरत की सबसे बड़ी दुश्मन है "
रमाकांत जी कुछ और बोलते उसके पहले ही उनकी पत्नी बोल उठी जाने भी दो रहने दो पुरानी बातें ........
जल्दी जाकर मिठाई लेकर आइये ना ......आज मैं पहली बार माँ बनी हूँ कहते कहते रो पड़ी ,.....
रमाकांत जी भी अपनी आँखों की नमी पोछते हुए थैला लेकर घर से बाहर निकल गए .......
४५ साल की कुँवारी औरत हम बच्चों को माँ का प्यार कैसे दे सकती है ?
वो बच्चों का दर्द क्या समझेगी , .!!
अरे हाँ मैं उसे क्यूँ कोस रही हूँ , मुझे तो शर्म आती है पापा की सोच पर हम बच्चों का देख भाल करने के आड़ में ,अपना सुख पूरा करना चाहते है। आपको ना जाने क्यूँ इतनी सी बात समझ नही आ रही है ।
शांति से सोच रिया तुम दोनों बहने तो शादी करके अपने घर चले जाओगी २-४ सालों में उसके बाद भैया अकेले रह जायेंगे ...कहते हुए कमला उसके सर को प्यार से सहलाने लगी ।तभी रिया बोली बुआ अगर माँ की जगह पापा को कुछ हो जाता तो भी आप यही बात इतनी आसानी से माँ के लिए कहती ,??
कमला बोली शायद नही कहती क्योंकि स्त्री अंदर से बहुत मजबूत होती है हर मुश्किल का सामना बड़ी साहस के साथ कर सकती है घर बाहर दोनो को संभाल सकती है , लेकिन पुरुष के लिए एकाकी जीवन बहुत मुश्किल होता है ।
ठीक है बुआ आपको पापा सही लगते है तो आप उनका साथ दे सकती हो ,पर हम दोनो बहने इस रिश्ते को कभी नही स्वीकारेंगे वो "दूसरी औरत" हमारी माँ कभी नही बन सकती कहते हुए रिया कमरे से बाहर चली गयी।
सुख के समय को बीतते कहाँ समय लगता है , देखते -देखते आठ साल हो गए ,दोनो बेटियों की शादी हो गयी दोनो ही अपनी गृहस्थी में व्यस्त हो गयी । पर शादी के बाद इतने सालों में दोनो ने कभी मायके का रुख नही किया । पापा को भी माफ नही कर पाई ...............
एक दिन दोपहर को रमाकांत जी घर का डोर बेल बजा दरवाज़ा रमाकांत जी की पत्नी ने खोला और सामने रिया को खड़े देखकर हैरान हो गयी जब तक कुछ समझ पाती ,रिया उनके पैरों में गिर कर रोने लगी मुझे माफ़ कर दो माँ मुझसे बहुत बड़ी भूल हो गई,
आप महान हो माँ मुझे माफ़ कर दो।
उठो बेटी कहकर उन्होंने रिया को गले से लगा लियाऔर उनके माथे को पागलो की तरह चूमने लगी .........
रमाकांत जी तंज कसते हुए बोले ये दूसरी औरत तुम्हारी माँ कब से हो गयी ?
रिया सिसकते हुए बोली आपको तो सब पता है पापा फिर आप ऐसा क्यूँ बोल रहे हो ...!
ओह, तो आज तुम्हे पता चल गया कि तुम्हारे पति को किडनी दान कर तुम्हारे सुहाग को जीवन दान देने वाला , अजनबी कोई और नही बल्कि ये दूसरी औरत ही है कहते हुए व्यंग्यात्मक मुस्कान रमाकांत जी के चेहरे पर फैल गई.... तुम जैसी कुछ लोगों की वज़ह से ही दुनिया कहती है कि ....."औरत ही औरत की सबसे बड़ी दुश्मन है "
रमाकांत जी कुछ और बोलते उसके पहले ही उनकी पत्नी बोल उठी जाने भी दो रहने दो पुरानी बातें ........
जल्दी जाकर मिठाई लेकर आइये ना ......आज मैं पहली बार माँ बनी हूँ कहते कहते रो पड़ी ,.....
रमाकांत जी भी अपनी आँखों की नमी पोछते हुए थैला लेकर घर से बाहर निकल गए .......
विजिटिंग कार्ड एक कहानी
सोमवार का दिन था..... इतवार की छुट्टी के बाद जब सोमवार को आफिस जाना होता है तो बाकी दिनों की अपेक्षा थोड़ा सा उत्साह तो होता ही है ...... आफिस के लिए सलीके से तैयार होने का ..... थोड़ा संवरने का.... इसलिए आज साड़ी पहनी उसने ......लाल रंग की काटन की साड़ी जिसमें काले रंग धागों के फूलों की कढ़ाई थी .....सब कहते थे कि उस पर साड़ी अच्छी लगती है ......सो पहन ली और आफिस पहुंच गयी ......नये कपड़े पहन कर वैसे भी मन अपने आप कुछ प्रसन्न सा हो जाता है .....शायद कुछ मनोवैज्ञानिक प्रभाव होता है .....तो वो भी खुश थी आज ...सब कुछ सामान्य था आफिस में सुबह ....मगर फिर किसी वजह से कुछ ऐसा असामान्य घटित होता है उसके साथ कि बस अजीब स्थिति हो गयी उसकी ..... दिल बैठ सा गया तनाव के कारण ....रोना भी आया बहुत मगर आफिस था ये .....जहां रोया नहीं जा सकता था ..... बहुत सी अनापेक्षित चीजें हो जाती हैं कभी कभी वहां पर जहां आप काम करते हैं ....
शाम को काम की वजह से आफिस से निकलने में देर हो गई उसे ..... अंधेरा हो चुका था..... तनाव के कारण तबियत भी खराब थी कुछ ..... खैर घर जाने के लिए सिटी बस पकड़ी उसने .....कोई १२-१४ सवारी ही रही होंगी बस में .....वो जाकर खिड़की की तरफ चेहरा कर के बैठ गई .... जेहन में आफिस में हुई घटना घूम रही थी .... कभी जब कुछ बुरा घटित होता है तो उसके साथ - साथ पूर्व में घटित हुई उसी प्रकार की अन्य खराब चीजें भी दिमाग में रिकाल होने लगती हैं और तनाव का स्तर तब कई गुना बढ़ जाता है .......यही उसके साथ हो रहा था ......तनाव साफ चेहरे पर दिखाई देने लगा था ......चेहरा बुखार से तपकर लाल हो चुका था ....हाथ पैर कांप से रहे थे उसके ..... आंखों में आंसू आ रहे थे ...रोकने की कोशिश की कई बार .....मगर फिर भी आंखों की कोरों से ढलक ही गए ..... अंधेरा था तो शायद बस में मौजूद लोगों ने देख नहीं पाया ये .....मगर बराबर वाली सीट पर एक लड़का बैठा था जो उसे बराबर नोटिस कर रहा था ..... पता नहीं उसके चेहरे को .....लाल साड़ी में लिपटी सुंदरता को .....या फिर उसकी तकलीफ़ को ....उस दर्द को जो उसके चेहरे पर दिख रहा था ....या उन आंसुओं को जो उसकी आंखों में कुछ पल ठहरे हुए से थे .....जो भी हो लड़का कभी उसके तपते हुए चेहरे को देखता और कभी कांपती हुई उंगलियों को .....
कुछ देर बाद दो लोगों को छोड़कर बाकी सवारी बस से उतर गई थी .....बस में अब शांति थी .......इधर उसे आभास हो गया था कि ये लड़का उसे नोटिस कर रहा है ..... पता नहीं क्यों लड़के के नोटिस करने के कारण वह ज्यादा भावुक हो गई ....... ऐसा लगा जैसे वो लड़का बिना कुछ कहे ही उसकी तकलीफ़ उसकी मनोस्थिति समझ रहा है ...... अंजान होकर भी पता नहीं कैसे दोनों एक - दूसरे के मन को समझ ले रहे थे .... उसे ऐसा लग रहा था कि लड़के से अपना सब दर्द कह दे ...... उसके पास बैठ के रो ले ..... और लड़के के भाव ऐसे थे मानों वो उसका दर्द उसकी तकलीफ़ जानना और बांट लेना चाहता हो .....कभी कोई अंजान शख्स भी ऐसा मिल जाता है कि आप उससे पहली बार में ही अपनी जिंदगी की वो बातें वो तकलीफ़े कह जाते हैं जो आप अपने बहुत खास .....बहुत नजदीक इंसान से भी नहीं कह पाते........ होता है ऐसा अक्सर .....
अगला स्टाप आते ही उसके मन में आया कि जो दो सवारी बची है वो भी उतर जाएं काश.....उन दोनों के बीच में मौन रहे बस..... लड़का भी शायद ऐसा ही चाहता था और यही हुआ .....
अब सिर्फ वो दोनों ही बचे थे बस में .....एक घंटे के सफर में एक या दो बार मात्र एक पल के लिए ही दोनों की नजरें टकराई होंगी अंजाने में ....अगला स्टाप आने के थोड़ा पहले लड़के ने अपना बटुआ निकाला और उससे कुछ निकाल कर अपनी सीट पर रख दिया .....लड़की ने चेहरा खिड़की की तरफ कर लिया ......लड़का चुपचाप बस से उतर गया और उतरने के बाद उसने खिड़की की तरफ देखा ....... आखिरी बार दोनों की नज़रें मिली ......जो शायद बहुत कुछ कहना और सुनना चाहती थीं एक दूसरे से .....बस आगे बढ़ चुकी थी ...... लड़की ने लड़के की सीट की तरफ देखा .....विजिटिंग कार्ड रखा हुआ था ..... उसने उठा कर देखा और पर्स में रख लिया .......घर आकर फिर से देखा उस विजिटिंग कार्ड को जिस पर उसका नाम और मोबाइल नंबर लिखा था ........फोन तो नहीं किया उसने कभी उस लड़के को मगर वो विजिटिंग कार्ड आज भी अपने पर्स में संभाल कर रखा हुआ है ........!!
शाम को काम की वजह से आफिस से निकलने में देर हो गई उसे ..... अंधेरा हो चुका था..... तनाव के कारण तबियत भी खराब थी कुछ ..... खैर घर जाने के लिए सिटी बस पकड़ी उसने .....कोई १२-१४ सवारी ही रही होंगी बस में .....वो जाकर खिड़की की तरफ चेहरा कर के बैठ गई .... जेहन में आफिस में हुई घटना घूम रही थी .... कभी जब कुछ बुरा घटित होता है तो उसके साथ - साथ पूर्व में घटित हुई उसी प्रकार की अन्य खराब चीजें भी दिमाग में रिकाल होने लगती हैं और तनाव का स्तर तब कई गुना बढ़ जाता है .......यही उसके साथ हो रहा था ......तनाव साफ चेहरे पर दिखाई देने लगा था ......चेहरा बुखार से तपकर लाल हो चुका था ....हाथ पैर कांप से रहे थे उसके ..... आंखों में आंसू आ रहे थे ...रोकने की कोशिश की कई बार .....मगर फिर भी आंखों की कोरों से ढलक ही गए ..... अंधेरा था तो शायद बस में मौजूद लोगों ने देख नहीं पाया ये .....मगर बराबर वाली सीट पर एक लड़का बैठा था जो उसे बराबर नोटिस कर रहा था ..... पता नहीं उसके चेहरे को .....लाल साड़ी में लिपटी सुंदरता को .....या फिर उसकी तकलीफ़ को ....उस दर्द को जो उसके चेहरे पर दिख रहा था ....या उन आंसुओं को जो उसकी आंखों में कुछ पल ठहरे हुए से थे .....जो भी हो लड़का कभी उसके तपते हुए चेहरे को देखता और कभी कांपती हुई उंगलियों को .....
कुछ देर बाद दो लोगों को छोड़कर बाकी सवारी बस से उतर गई थी .....बस में अब शांति थी .......इधर उसे आभास हो गया था कि ये लड़का उसे नोटिस कर रहा है ..... पता नहीं क्यों लड़के के नोटिस करने के कारण वह ज्यादा भावुक हो गई ....... ऐसा लगा जैसे वो लड़का बिना कुछ कहे ही उसकी तकलीफ़ उसकी मनोस्थिति समझ रहा है ...... अंजान होकर भी पता नहीं कैसे दोनों एक - दूसरे के मन को समझ ले रहे थे .... उसे ऐसा लग रहा था कि लड़के से अपना सब दर्द कह दे ...... उसके पास बैठ के रो ले ..... और लड़के के भाव ऐसे थे मानों वो उसका दर्द उसकी तकलीफ़ जानना और बांट लेना चाहता हो .....कभी कोई अंजान शख्स भी ऐसा मिल जाता है कि आप उससे पहली बार में ही अपनी जिंदगी की वो बातें वो तकलीफ़े कह जाते हैं जो आप अपने बहुत खास .....बहुत नजदीक इंसान से भी नहीं कह पाते........ होता है ऐसा अक्सर .....
अगला स्टाप आते ही उसके मन में आया कि जो दो सवारी बची है वो भी उतर जाएं काश.....उन दोनों के बीच में मौन रहे बस..... लड़का भी शायद ऐसा ही चाहता था और यही हुआ .....
अब सिर्फ वो दोनों ही बचे थे बस में .....एक घंटे के सफर में एक या दो बार मात्र एक पल के लिए ही दोनों की नजरें टकराई होंगी अंजाने में ....अगला स्टाप आने के थोड़ा पहले लड़के ने अपना बटुआ निकाला और उससे कुछ निकाल कर अपनी सीट पर रख दिया .....लड़की ने चेहरा खिड़की की तरफ कर लिया ......लड़का चुपचाप बस से उतर गया और उतरने के बाद उसने खिड़की की तरफ देखा ....... आखिरी बार दोनों की नज़रें मिली ......जो शायद बहुत कुछ कहना और सुनना चाहती थीं एक दूसरे से .....बस आगे बढ़ चुकी थी ...... लड़की ने लड़के की सीट की तरफ देखा .....विजिटिंग कार्ड रखा हुआ था ..... उसने उठा कर देखा और पर्स में रख लिया .......घर आकर फिर से देखा उस विजिटिंग कार्ड को जिस पर उसका नाम और मोबाइल नंबर लिखा था ........फोन तो नहीं किया उसने कभी उस लड़के को मगर वो विजिटिंग कार्ड आज भी अपने पर्स में संभाल कर रखा हुआ है ........!!
Wednesday, 26 July 2017
Mera Tujhse se Hai Pehle ka Naata koi
मेरा तुझ से है पहले का नाता कोई
यूँ ही नहीं दिल लुभाता कोई
जाने तू या जाने न
माने तू या माने न
धुआँ-धुआँ था वो समा
यहाँ-वहाँ जाने कहाँ
तू और मैं कहीं मिले थे पहले
देखा तुझे तो दिल ने कहा
जाने तू या जाने न
माने तू या माने न
तू भी रही मेरे लिए
मैं भी रहा तेरे लिए
पहले भी मैं तुझे बाहों में लेके
झूमा किया और झूमा किया
जाने तू या जाने न
माने तू या माने न
देखो अभी खोना नहीं
कभी जुदा होना नहीं
अब खेल में यूँही रहेंगे दोनों
वादा रहा ये इस शाम का
जाने तू या जाने न
माने तू या माने न
(2)
तेरा मुझसे है पहले का नाता कोई
यूँ ही नहीं दिल लुभाता कोई
जाने तू या जाने ना, माने तू या माने ना
देखो अभी खोना नहीं, कभी जुदा होना नहीं
हरदम यूँ ही मिले रहेंगे दो नैन
वादा रहा ये इस शाम का
जाने तू या जाने ना, माने तू या माने ना
वादे गये बातें गईं, जागी जागी रातें गईं
चाह जिसे मिला नहीं, तो भी कोई गिला नहीं
अपना तो क्या जिये मरे चाहे कुछ हो
तुझको तो जीना रास आ गया
जाने तू या जाने ना, माने तू या माने ना....
यूँ ही नहीं दिल लुभाता कोई
जाने तू या जाने न
माने तू या माने न
धुआँ-धुआँ था वो समा
यहाँ-वहाँ जाने कहाँ
तू और मैं कहीं मिले थे पहले
देखा तुझे तो दिल ने कहा
जाने तू या जाने न
माने तू या माने न
तू भी रही मेरे लिए
मैं भी रहा तेरे लिए
पहले भी मैं तुझे बाहों में लेके
झूमा किया और झूमा किया
जाने तू या जाने न
माने तू या माने न
देखो अभी खोना नहीं
कभी जुदा होना नहीं
अब खेल में यूँही रहेंगे दोनों
वादा रहा ये इस शाम का
जाने तू या जाने न
माने तू या माने न
(2)
तेरा मुझसे है पहले का नाता कोई
यूँ ही नहीं दिल लुभाता कोई
जाने तू या जाने ना, माने तू या माने ना
देखो अभी खोना नहीं, कभी जुदा होना नहीं
हरदम यूँ ही मिले रहेंगे दो नैन
वादा रहा ये इस शाम का
जाने तू या जाने ना, माने तू या माने ना
वादे गये बातें गईं, जागी जागी रातें गईं
चाह जिसे मिला नहीं, तो भी कोई गिला नहीं
अपना तो क्या जिये मरे चाहे कुछ हो
तुझको तो जीना रास आ गया
जाने तू या जाने ना, माने तू या माने ना....
Subscribe to:
Posts (Atom)
-
here are few stes where you can create your own website: socialGo Ning kickapps These sites are very helpfull and free o...
-
Have you completed your Graduation and seeks jobs. I have found a website that provides online and offline according to your skills. Freela...
-
I have earn many experiences about blogging and affiliates marketing. So, I am going to share my experience which is must be useful for eve...