Sunday 23 July 2017

Khuda bhi jab tumhe dekhta hoga

ख़ुदा भी जब तुम्हें, मेरे पास देखता होगा
ख़ुदा भी जब तुम्हें, मेरे पास देखता होगा
इतनी अनमोल चीज़
दे दी कैसे सोचता होगा

तू बेमिसाल है, तेरी क्या मिसाल दूं
आसमां से आई है, यही कहके टाल दूं
फिर भी कोई जो पूछे, क्या है तू कैसी है
हाथों में रंग लेके, हवा में उछाल दूं

ख़ुदा भी जब तुम्हें, मेरे पास देखता होगा
इतनी अनमोल चीज़
दे दी कैसे सोचता होगा


जो भी जमीं तेरे पांव तले आए
क़दमों से छूके वो आसमां हो जाए
तेरे आगे फीके-फीके, सारे श्रृंगार हैं
मैं तो क्या, फ़रिश्ते भी तुझपे निसार हैं
गर्मी की शाम है तू, जाडों की धूप है
जितने भी मौसम हैं तेरे कर्ज़दार हैं
ख़ुदा भी जब तेरे अंदाज़ देखता होगा
इतनी अनमोल चीज़
दे दी कैसे सोचता होगा

चेहरा है या जादू, रूप है या ख़्वाब है
आंखें हैं या अफ़साना, जिस्म या किताब है
आजा तुझे मैं पढ़ लूं, दिल में उतार लूं
होंठों से देखूं तुझे, आंखों से पुकार लूं
ख्वाहिशें ये कहती हैं, कहती रहती हैं
ले के तुझे बाहों में शामें गुज़ार लूं
ख़ुदा भी अब तुझे दिन रात ढूंढता होगा
इतनी अनमोल चीज़
दे दी कैसे सोचता होगा...

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