दो खबरों पर जरा नजर डालिए।
1- 12 हजार करोड़ रुपये की मालियत वाले रेमंड ग्रुप के मालिक विजयपत सिंघानिया पैदल हो गए। बेटे ने पैसे-पैसे के लिए मोहताज कर दिया।
2- करोड़ों रुपये के फ्लैट्स की मालकिन आशा साहनी का मुंबई के उनके फ्लैट में कंकाल मिला।
विजयपत सिंघानिया और आशा साहनी, दोनों ही अपने बेटों को अपनी दुनिया समझते थे। पढ़ा-लिखाकर योग्य बनाकर उन्हें अपने से ज्यादा कामयाबी की बुलंदी पर देखना चाहते थे। हर मां, हर पिता की यही इच्छा होती है। विजयपत सिंघानिया ने यही सपना देखा होगा कि उनका बेटा उनकी विरासत संभाले, उनके कारोबार को और भी ऊंचाइयों पर ले जाए। आशा साहनी और विजयपत सिंघानिया दोनों की इच्छा पूरी हो गई। आशा का बेटा विदेश में आलीशान जिंदगी जीने लगा, सिंघानिया के बेटे गौतम ने उनका कारोबार संभाल लिया, तो फिर कहां चूक गए थे दोनों। क्यों आशा साहनी कंकाल बन गईं, क्यों विजयपत सिंघानिया 78 साल की उम्र में सड़क पर आ गए। मुकेश अंबानी के राजमहल से ऊंचा जेके हाउस बनवाया था, लेकिन अब किराए के फ्लैट में रहने पर मजबूर हैं। तो क्या दोषी सिर्फ उनके बच्चे हैं..?
अब जरा जिंदगी के क्रम पर नजर डालें। बचपन में ढेर सारे नाते रिश्तेदार, ढेर सारे दोस्त, ढेर सारे खेल, खिलौने..। थोड़े बड़े हुए तो पाबंदियां शुरू। जैसे जैसे पढ़ाई आगे बढ़ी, कामयाबी का फितूर, आंखों में ढेर सारे सपने। कामयाबी मिली, सपने पूरे हुए, आलीशान जिंदगी मिली, फिर अपना घर, अपना निजी परिवार। हम दो, हमारा एक, किसी और की एंट्री बैन। दोस्त-नाते रिश्तेदार छूटे। यही तो है शहरी जिंदगी। दो पड़ोसी बरसों से साथ रहते हैं, लेकिन नाम नहीं जानते हैं एक-दूसरे का। क्यों जानें, क्या मतलब है। हम क्यों पूछें..। फिर एक तरह के डायलॉग-हम लोग तो बच्चों के लिए जी रहे हैं।
मेरी नजर में ये दुनिया का सबसे घातक डायलॉग है-'हम तो अपने बच्चों के लिए जी रहे हैं, बस सब सही रास्ते पर लग जाएं।' अगर ये सही है तो फिर बच्चों के कामयाब होने के बाद आपके जीने की जरूरत क्यों है। यही तो चाहते थे कि बच्चे कामयाब हो जाएं। कहीं ये हिडेन एजेंडा तो नहीं था कि बच्चे कामयाब होंगे तो उनके साथ बुढ़ापे में हम लोग मौज मारेंगे..? अगर नहीं तो फिर आशा साहनी और विजयपत सिंघानिया को शिकायत कैसी। दोनों के बच्चे कामयाब हैं, दोनों अपने बच्चों के लिए जिए, तो फिर अब उनका काम खत्म हो गया, जीने की जरूरत क्या है।
आपको मेरी बात बुरी लग सकती है, लेकिन ये जिंदगी अनमोल है, सबसे पहले अपने लिए जीना सीखिए। जंगल में हिरन से लेकर भेड़िए तक झुंड बना लेते हैं, लेकिन इंसान क्यों अकेला रहना चाहता है। गरीबी से ज्यादा अकेलापन तो अमीरी देती है। क्यों जवानी के दोस्त बढ़ती उम्र के साथ छूटते जाते हैं। नाते रिश्तेदार सिमटते जाते हैं..। करोड़ों के फ्लैट की मालकिन आशा साहनी के साथ उनकी ननद, भौजाई, जेठ, जेठानी के बच्चे पढ़ सकते थे..? क्यों खुद को अपने बेटे तक सीमित कर लिया। सही उम्र में क्यों नहीं सोचा कि बेटा अगर नालायक निकल गया तो कैसे जिएंगी। जब दम रहेगा, दौलत रहेगी, तब सामाजिक सरोकार टूटे रहेंगे, ऐसे में उम्र थकने पर तो अकेलापन ही हासिल होगा।
इस दुनिया का सबसे बड़ा भय है अकेलापन। व्हाट्सएप, फेसबुक के सहारे जिंदगी नहीं कटने वाली। जीना है तो घर से निकलना होगा, रिश्ते बनाने होंगे। दोस्ती गांठनी होगी। पड़ोसियों से बातचीत करनी होगी। आज के फ्लैट कल्चर वाले महानगरीय जीवन में सबसे बड़ी चुनौती तो ये है कि खुदा न खासता आपकी मौत हो गई तो क्या कंधा देने वाले चार लोगों का इंतजाम आपने कर रखा है..? जिन पड़ोसियों के लिए नो एंट्री का बोर्ड लगा रखा था, जिन्हें कभी आपने घर नहीं बुलाया, वो भला आपको घाट तक पहुंचाने क्यों जाएंगे..?
याद कीजिए दो फिल्मों को। एक अवतार, दूसरी बागबां। अवतार फिल्म में नायक अवतार (राजेश खन्ना) बेटों से बेदखल होकर अगर जिंदगी में दोबारा उठ खड़ा हुआ तो उसके पीछे दो वजहें थीं। एक तो अवतार के दोस्त थे, दूसरे एक वफादार नौकर, जिसे अवतार ने अपने बेटों की तरह पाला था। वक्त पड़ने पर यही लोग काम आए। बागबां के राज मल्होत्रा (अमिताभ बच्चन) बेटों से बेइज्जत हुए, लेकिन दूसरी पारी में बेटों से बड़ी कामयाबी कैसे हासिल की, क्योंकि उन्होंने एक अनाथ बच्चे (सलमान खान) को अपने बेटे की तरह पाला था, उन्हें मोटा भाई कहने वाला दोस्त (परेश रावल) था, नए दौर में नई पीढ़ी से जुड़े रहने की कूव्वत थी।
विजयपत सिंघानिया के मरने के बाद सब कुछ तो वैसे भी गौतम सिंघानिया का ही होने वाला था, तो फिर क्यों जीते जी सब कुछ बेटे को सौंप दिया..? क्यों संतान की मुहब्बत में ये भूल गए कि इंसान की फितरत किसी भी वक्त बदल सकती है। जो गलती विजयपत सिंघानिया ने की, आशा साहनी ने की, वो आप मत कीजिए। रिश्तों और दोस्ती की बागबानी को सींचते रहिए, ये जिंदगी आपकी है, बच्चों की बजाय पहले खुद के लिए जिंदा रहिए। आप जिंदा रहेंगे, बच्चे जिंदा रहेंगे। अपेक्षा किसी से भी मत कीजिए, क्योंकि अपेक्षाएं ही दुख का कारण हैं।
साभार फेसबुक..
Labels
- Bank Jobs
- Computer Tricks
- Download Android Apps And Games
- Earn Money
- Educational
- Facts
- Funny Tricks
- Gadget
- Google+
- GST
- Har Kuch Sab Kuch
- Historic
- Home
- I hate Cricket
- Indian
- Internet
- Internet Security
- Kids Stories
- Learn English
- Mobile
- MP3 Songs
- PC TRICKS
- Pictures
- Security
- Smart Tips
- SMS ZONE
- Software
- Songs
- UPSC
- Video
- Whatsapo
- Whatsapp Status Video
- Windows Phone
- एक और कहानी
- कौन बनेगा करोड़पति
- निबंध
- शायरी
- सामान्य जानकारी
-
here are few stes where you can create your own website: socialGo Ning kickapps These sites are very helpfull and free o...
-
Have you completed your Graduation and seeks jobs. I have found a website that provides online and offline according to your skills. Freela...
-
Application: Software that performs a useful function for you. Bandwidth: The amount of data that can be sent through a given communic...